पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/८०

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४. डॉक्टर ताराचन्द और हिन्दुस्तानी [महात्मा गांधी] श्री मुरलीधर श्रीवास्तव एम० ए० ने डाक के थैले के लिये नीचे लिखा प्रश्न भेजा थाः- "जब मन में किसी चीज के लिये पक्षपात पैदा हो जाता है, तो मनुष्य इतिहास को भी विकृत बनाने बैठ जाता है। आपकी तरह डॉक्टर ताराचंद भी हिंदुस्तानी के चुस्त हिमायती हैं। उन्हें अपने विचार रखने का उतना ही अधिकार है, जितना आपको या मुझे अपने विचार रखने का है। उन्होंने यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि हिन्दुस्तानी (खड़ी बोली) का साहित्य जभाषा के साहित्य से अधिक पुराना है और उसके उत्साह में उन्होंने यह कहकर कि १६ वीं सदी से पहले ब्रज में कोई चीज लिखी ही नहीं गई, ब्रजभाषा के इतिहास को बहुत गलत तरीके से पेश किया है उनके कथनानुसार १६ वीं सदी में सूरदास ही पहले कवि थे, जिन्होंने ब्रज में अपनी रचनाएँ की। चूंकि गत २६ मार्च के 'हरिजन' में आपने इन विद्वान् डॉक्टर साहब के एक पत्र का अवतरण दिया है, और चूँकि 'हरिजन' की प्रतिष्ठा और उसका प्रचार व्यापक है, इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि इस भूल की ओर ध्यान दिलाया जाय। सूरदास से पहले के ब्रज- साहित्य के लिये केवल कबीर की रचनाएँ ही पढ़ लेनी काफी होंगी अमीर खुसरो की तो बात ही क्या, जिनकी कुछ कवितायें ब्रजभाषा में भी मिलती हैं। सूरदास से पहले के कई संतों और भक्तों की अनेक छोटी-छोटी रचनाएँ ब्रज में पाई जाती हैं, और