पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/७९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

€ राष्ट्रभाषा उत्तरः-आप ठीक कहते हैं, परंतु आपके विरोध में इस प्रश्न के लिए स्थान नहीं है। क्योंकि जो चीज यहाँ है, उसका तो विरोध है ही नहीं । परस्पर वृद्धि करने की बात है। प्रश्न १०:-राष्ट्रभाषा की क्या आवश्यकता है ? क्या एक मातृभाषा और दूसरी विश्वभाषा काफी न होगी ? इन दोनों भाषाओं के लिये एक रोमन लिपि हो तो क्या बुरा है ? उत्तरः-आपका यह प्रश्न श्राश्चर्य में डालनेवाला है। अँग- रेजी तो विश्वभाषा है ही, मगर क्या वह हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा बन सकती है ? राट्रभाषा तो लाखों लोगों को जाननी चाहिए ! वे अँगरेजी भाषा का बोझ कैसे उठा सकेंगे ? हिंदुस्तानी स्वभाव से राष्ट्रभाषा है क्योंकि वह लगभग २१ करोड़ की मातृभाषा है। संभव है कि २१ करोड़ की इस भाषा को बाकी के अधिकतर लोग आसानी से समझ सकें। लेकिन अगरेजी तो एक लाख की भी मातृभाषा शायद ही कही जा सके। अगर हिंदुस्तान को एक राष्ट्र बनाना है, अथवा एक राष्ट्रभापा है, तो हमें एक राष्ट्रभाषा तो चाहिए ही । इसलिये मेरी दृष्टि से अँगरेजी विश्वभाषा के रूप में रहे और शोभा पाये, इसी तरह रोमन लिपि भी विश्वलिपि के रूप में रहे और शोभा पाये-रहेगी और शोभेगी-हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा की लिपि के रूप में कभी नहीं । ६-इसे हम क्या कहें, सत्यप्रेम या देशनिष्ठा ? वस्तुतः यहाँ की 'चीज है क्या कुछ इस पर भी विचार होना चाहिए ? अपना दोष भी क्या अपने अादर का पात्र होता है ? परस्पर वृद्धि होती कैसे है, कुछ इसका भी तो ध्यान रखना होगा! ७.-महात्माजी ने किसी 'लाम' को 'बोझ' तो माना- -'उर्दू' का न सही अँगरेजी का सही।