पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/७८

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राष्ट्रभाषा संबंधी दस प्रश्न बहुत से फारसी-अरबी और अँगरेजी शब्द होते हुए भी इन भाषाओं ने अपनी लिपि नहीं छोड़ी, उसी तरह राष्ट्रभाषा भी विदेशी शब्द को कायम रखते हुए अपनी परंपरागत नागरी लिपि को ही क्यों न अपनाये रहे ? उत्तर :-यहाँ परंपरागत वस्तु छोड़ने की नहीं, बल्कि उसमें कुछ इजाफा करने की बात है। अगर मैं संस्कृत जानता हूँ और साथ ही अरवी भी सीख लेता हूँ; तो इसमें बुराई क्या है ? मुम- किन है कि इससे न संस्कृत को पुष्टि मिले, न अरवी को फिर भी अरबी से मेरा परिचय तो बढ़ेगा न ? सद्ज्ञान की वृद्धि का भी कभी द्वेष किया जा सकता है क्या ? प्रश्न -भारतीय भाषाओं के उच्चारण को व्यक्त करने की सबसे ज्यादा योग्यता नागरी लिपि में है और आजकल की फारसी लिपि इस काम के लिये बहुत ही दोषपूर्ण है। क्या यह सच नहीं? ५- महात्माजी ने 'सद्ज्ञान' के अमोघ अस्त्र का प्रयोग कर ही दिया। तनिक ध्यान से पढ़ें तो पता चले कि प्रश्न तो है 'लिपि' का और महात्माजी प्रसंग खड़ा कर देते हैं 'भाषा' का और समाधान करते हैं 'सज्ञान की दुहाई दे। समझ में नहीं पाता. कि अरबी फारसी अथवा उर्दू पढ़ लेने से नागरी लिपि में इजाफा' क्या होगा। महात्माजी 'क'ख' और 'ग' की ओर संकेत करते हैं ? नहीं उनके सामने तो 'सद्ज्ञान' की राशि है ! कोरे ज्ञान की सो भी नहीं मला फारसी लिपि का सत्ज्ञान से क्या संबंध है ! रही 'उर्दू' की ज़बान । सो यदि 'सद्ज्ञान' ही की बात है और मुसलमानों (१)को ही खुश करना है तो उनकी राजभाषा फारसी को ही क्यों न सीखा जाय ? 'अाखिर' कल तक हमारे पुरखा तो राजभाषा के रूप में उसे सीखते ही थे।