पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/७७

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EL राष्ट्रभाषा प्रश्न :--अहिन्दीभाषी प्रांतों के लोगों के लिये, जो राष्ट्र- भाषा नहीं जानते एक साथ दो लिपियों में राष्ट्रभाषा सीखना क्या जरूरत से ज्यादा वोझिल न होगा ? पहले एक लिपि द्वारा वह अच्छी तरह सीख ली जाय, तो फिर दूसरी लिपि तो बड़ी आसानी से सीख ली जा सकेगी। उत्तरः-इसका पता तो अनुभव से लगेगा। मैं मानता हूँ कि जो इनमें से एक भी लिपि नहीं जानता, वह दोनों लिपियाँ एक साथ नहीं सीखेगा। वह स्वेच्छा से पहली अथवा दूसरी लिपि पहले सीखेगा और बाद में दूसरी । शुरू की पाठ्यपुस्तकों में शब्द दोनों में लगभग एक ही होंगे। मेरी दृष्टि में मेरी योजना एक महान् और आवश्यक प्रयोग है। यह राष्ट्र को पुष्टि देनेवाला सिद्ध होगा और कांग्रेस के प्रस्ताव को अमली जामा पहनाने में इसका बहुत बड़ा हिस्सा रहेगा । इसलिए मुझे आशा है कि लाखों सेवक और सेविकाएँ इस योजना का स्वागत करेंगी। प्रश्न :-भाषा के स्वरूप में देशकाल की परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन होते ही रहेंगे। इसे कोई रोक नहीं सकता। इससे राष्ट्रभाषा में विदेशी भाषा के जो बहुत शब्द आ गये हैं, और रूढ़ हो गये हैं, वे अब निकाले नहीं जा सकते। परंतु परंपरा से राष्ट्रभाषा की लिपि तो नागरी ही चली आती है। बीच में मुगल राज्य के वक्त फारसी लिपि आ गई। अब मुगलों का राज्य नहीं है, इसलिये जिस तरह गुजराती और मराठी में क्यों ? स्मरण रहे 'हिंदुस्तानी' पर जब तक फारसी का आवरण है तभी तक वह हिंदी से दूर है, जहाँ उसकी फारसी लिपि हटी कि वह हिंदुस्तान के परदेशी लोगों की कैद से छूटकर स्वदेशी बनी और हिन्दू मुसलिम-विरोध का सारा टेटा दूर हुश्रा ।