पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/७५

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राष्ट्रभाषा गौण वस्तु है। अगर राष्ट्रभाषा मातृभाषा की लिपि द्वारा सिखाई जाय, तोक्या वह ज्यादा आसानी से नहीं सीखी जा सकती ? अगर ऐसा किया जाय, तो राष्ट्रीय दृष्टि से इसमें क्या नुकसान है ? उत्तर :-आपका कहना सच है। मैं मानता हूँ कि अगर हिंदी और उर्दू प्रांतीय भाषाओं के द्वारा ही दिखाई जायें, तो वे आसानी से सीखी जा सकती हैं। मैं जानता हूँ कि इस किस्म की कोशिश दक्षिण के प्रान्तों में हो रही है, पर वह पद्धतिपूर्वक नहीं हो रही । मैं देखता हूँ कि आपका सारा विरोध इस मान्यता के आधार पर है कि लिपि की शिक्षा बोझरूप है। मैं लिपि की शिक्षा को इतना कठिन नहीं मानता परंतु प्रांतीय लिपि के द्वारा राष्ट्रभाषा का प्रचार किया जाय, तो उसमें मेरा कोई विरोध हो ही नहीं सकता। जहाँ लोगों में उत्साह होगा, वहाँ अनेक पद्ध- तियाँ साथ-साथ चलेंगी। प्रश्न ५:-अगर हम मान भी लें कि जब तक पंजाब, सिंध और सरहदी सूबे के लोग नागरी नहीं सीख लेते तब तक उनके लाथ मिलने-जुलने के लिए उर्दू जानने की आवश्यकता है, तो इसके लिए कुछ लोग उर्दू सीख ले-मसलन, प्रचारक लोग । सारे हिंदुस्तान को उर्दू सीखने की क्या जरूरत है ? उत्तर :- सारे हिन्दुस्तान के सीखने का यहाँ सवाल ही नहीं ! मैं मानता ही नहीं कि सारा हिन्दुस्तान राष्ट्रभाषा सीखेगा। हाँ, जिन्हें राष्ट्र में भ्रमण करना है, और सेवा करनी है, उनके लिए यह सवाल है जरूर। अगर आप यह स्वीकार कर कि दो भाषा और दो लिपि सीखबे से सेवाक्षमता बढ़ती है, तो आपका विरोध और आपकी शंका शान्त हो जायगी। प्रश्न ६- आजकल राष्ट्रभाषा नागरी व फारसी दोनों लिपियों में लिखी जाती है। जिसे जिस लिपि में सीखना हो सीखे । हर V