पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/७४

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राष्ट्रभाषा संबंधी दस प्रश्न का लाभ और मिलता है। आप इसको बोझ मानते हैं । लाम मानना कि वोझ यह तो सीखनेवाले की वृत्ति पर अवलम्बित है। अगर उसमें उमड़ता हुआ देश-प्रेम होगा तो वह फारसी लिपि और उर्दू भाषा को बोझरूप कभी न सानेगा। और जबर्दस्ती को तो मेरी योजना में स्थान ही नहीं है। जो इसमें लाभ समझेगा, बही दोनों लिपि और दोनों भाषा सीखेगा। प्रश्न ३:-हिन्दुस्तात का बहुत बड़ा हिस्सा नागरी लिपि जानता है। क्योंकि बहुत सी प्रान्तीय भाषाओं की लिपि नागरी अथवा नागरी से मिलती-जुलती है। पंजाब, सिन्ध और सरहदी सूत्रों में नागरी का प्रचार कम है। क्या ये लोग आसानी से नागरी सीख नहीं सकते? उत्तर:-इसका जवाब ऊपर दिया जा चुका है। सरहदी सूबेवालों को और दूसरों को देवनागरी तो सोखनी हो होगी। प्रश्न ४:-भाषा ज्यादातर तो बोलने के लिये है। बोलने और वातचीत करने के लिये लिपि की जरूरत नहीं। लिपि बहुत उनमें सख्य हो नहीं सकता | जिस दिन 'उर्दू में 'देश-प्रेम' उमड़ेगा उसी दिन वह हिन्दी हो जायगी । कोई भी 'उर्दू' से अभिज्ञ सच्चा देश प्रेमी, देश के नाम पर, उसका स्वागत कर नहीं सकता। क्योंकि उसमें हिन्दू तो क्या देशी मुसलमान भो घृणा की दृष्टि से देखे जाते है और सभी देशी वस्तुओं के बहिष्कार का भरसक प्रयत्न किया गया है। रही हिन्दू-सुसलिम एकता की बात, सो वह तो इस दोहरी योजना के कारण देखते-देखते और भी दो भिन्न भिन्न धाराओं में बँट गई है। तो अब वह कौन-सा जादू ऐसा काम करेगा जिससे चने की दो दालें फिर चना बनकर अपनी सृष्टि बढ़ाएँगी। क्या किसी लासा-लूसी से यह योजना सफल हो सकती है ?