पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/७१

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३. राष्ट्र-भाषा संबंधी दस प्रश्न [श्री मोहनदास करमचन्द गान्धी ] प्रश्न १:-फारसी लिपि का जन्म हिन्दुस्तान में नहीं हुआ। मुगलों के राज्य में यह हिन्दुस्तान में आई, जैसे अँगरेजों के राज्य में रोमन लिपि। पर राष्ट्रभाषा के लिए हम रोमन लिपि का प्रचार नहीं करते, तो फिर फारसी लिपि का प्रचार क्यों करना चाहिए? उत्तर:-अगर रोमन लिपि ने फारसी लिपि के समान ही घर किया होता, तो जो आप कहते हैं, वही होता। मगर रोमन लिपि तो सिर्फ मुट्ठी भर अँगरेजी पढ़े- लिखे लोगों तक ही सीमित रही है, जब कि फारसी तो करोड़ों हिन्दू-मुसलमान लिखते हैं। आपको फारसी और रोमन लिपि लिखनेवालों की संख्या ढूंढ़ निकालनी चाहिए। १-महात्मा जी का यह कथन कितना ऊपरी और श्रावेशपूर्ण है। रोमन लिपि का व्यवहार फारसी लिपि से कम भले ही हो पर वह 'मुट्ठी भर अँगरेजी पढ़े लिखे लोगों तक ही सीमित नहीं है प्रत्युत बहुत से फारसी-अरबी के मुल्ला भी उसे पहचानते और अपनाते भी हैं। फारसी-लिपि को 'करोड़ों हिंदू-मुसलमान' कहाँ लिखते हैं ? इतने तो उसे जानते भी नहीं हैं। यहाँ विचारणीय बात यह है कि रोमन लिपि का व्यवहार व्यापक है परन्तु फारसी-लिपि का सीमित । हाँ, उस सीमा के भीतर वह भले ही रोमन-लिपि से अधिक प्रचलित है। किन्तु वहाँ भी उनका अनुपात 'मुट्ठी भर' और 'करोड़ों' का नहीं है। दूसरे प्रश्न विदेशीपन का था, संख्या का नहीं।