पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/७०

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६० राष्ट्रभाषा का स्वरूप वही लिपि की दुल्हता के कारण कैसा पहाड़ हो रहा है । 'बहरी कहता है- परगट बुरा माने गुयुत बलि गए सो कहो वह कौन थे। डाक्टर हफ़ीज़ 'गुपुत' को 'कपट' पढ़ते हैं तो डाक्टर हक्क 'बलि' को 'बल' । 'बल' की बला में दोनों बलबला रहे हैं। बलि- हारी है ऐसी लिपि को और बलिहारी है उस बुद्धि को जो उसे राष्ट्रलिपि बनाना चाहती है और निरक्षर जनता को इसी के द्वारा साक्षर बनाना चाहती है । नहीं ऐसा हो नहीं सकता। 'बलि' को भूल कर भी 'बल' मत बनाओ, नहीं तो कोई हिंदुस्तानी का लाल उसे 'बिल' वा 'बुल' बाँच जायगा और आप बिलबिला कर रह जायेंगे। ऐसी छबीली अनहोनी पर क्यों मरे जाते हो ? हिंदी के क्यों नहीं हो रहते ? अरे! नागरी के नागर बनो उर्दू के बागर नहीं।