पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/६०

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राष्ट्रभाषा का स्वरूप और अपनी इस्तेलाहात व ईजादात को साथ लेकर यहाँ वारिद हुए; और इन सबके लिए नाम व इस्तेलाहात व अल्फ़ाज़ भी अपने साथ लाए और चूँकि यह हिंदुस्तान में बिलकुल नई चीजें थी इसलिए हिंदुस्तान की बोलियों में इनके मुरादिफ़ात की तलाश वेकार थी। और वही अल्फाज़ हिंदुस्तान में रायज हो गए। (नुकूशे सुलैमानी, पृ० ३०) हमारे घर के भाइयों और राष्ट्र के सपूतों की यह खोज और भी आगे बढ़ी । प्रोफेसर मुहम्मद अजमल खाँ को पंडित जवाहिर- लाल नेहरू के कहने से 'बुनियादी हिंदुस्तानी' की चिंता हुई और उन्होंने खोज निकाला कि यहाँ तो पहले कुछ था ही नहीं, जो कुछ दिखाई देता है सब मुसलमानों का किया हुआ है । देखिए न- यहाँ लिबास, खोराक और मकानों की किस्में लिखने की गुंजाइश नहीं लेकिन इनमें से जितनी किस्में हैं वह सब और अगर सब नहीं तो ६९ फ्री सदी और हिंदुस्तानी हैं। इनमें से अक्सर ईरानी, तातारी और तुर्की तमदुन की याद दिलाती हैं। इसमें शक नहीं कि इनकी श्रामद का ज़रिया मुसलमान हुए लेकिन इस तमदुन को हिंदुस्तान के बाशिंदों ने हिंदुस्तान ही के रुपया से हिंदुस्तान ही के सन्नात्रों और मजदूरों की मेहनत से तरक्को दी। मुसलमानों का अगर यह ख्याल हो कि इसलामी तमवुन किसी खास तजे लिबास व खोराक व मकान से वाबस्ता है तो कत्तयी ग़लत है इन चीज़ों का ताल्लुक ज्यादातर मुकामी आबोहवा और जुगराफ़िया हालात से नशोनुमा पाता है। ( उर्दू, सन् १९३६ ई०, पृ० ३८२) १-संकेतों । २--अाविष्कारों। ३-अागंतुक | ४-पर्यायो । ५-प्रचलित । ६-शिल्पियों । ७-श्रावद्ध ।