पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/६

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'भाषा' का प्रश्न राष्ट्रभाषा का प्रश्न बन गया। उर्दू सन् १७४४- ४५ ई० में उर्दू में अर्थात् दिल्ली के लाल किला में बनी और मुगल शाहंशाहों एवं दरबारी लोगों के साथ लखनऊ, अजीमाबाद (पटना) और मुर्शिदाबाद आदि शहरों में पहुंची। फारसी के साथ-साथ कंपनी सरकार के दरबार में दाखिल हुई और सन् १८०० में फोर्ट विलियस कालेज में जा जमी! फोर्ट विलियम कालेज की कृपा से वह 'हिंदुस्तानी' बनी और 'हिंदी' को 'हिंदुई' बता कर देश में फैलने का डौल डाला। फिर क्या हुआ इसका लेखा कब किसने लिया और आज कोई क्यों लेने लगा। आज तो २४ घंटे में इस देश के सपूत उर्दू सीख रहे हैं पर उर्दू का इतिहास मुँह खोलकर कहता है कि 'हिंदी' को उर्दू आती ही नहीं। और उर्दू के लोग उनकी कुछ न पूछिए । उर्दू के विषय में तो उन्होंने ऐसा जाल फैला रखा है कि बेचारी उर्दू को भी उसका पता नहीं। आज उर्दू क्या नहीं है ! घर की बोली से लेकर राष्ट्र की बोली तक जहाँ देखिए वहाँ उर्दू का नाम लिया जाता है और कहा यह जाता है कि वास्तव में यही सब की बोली है। इस सब की का अर्थ? उर्दू का कुछ भेद खुला तो 'हिंदुस्तानी' सामने आई और खुलकर कहने लगी- यह भी सही, वह भी सही; यह भी नहीं; वह भी नहीं; हिंदी भी, उर्दू भी; फारसी भी, अरबी भी, संस्कृत भी, ठेठ भी, पर नहीं; सबकी बोल-चाल की भाषा ! 'बोलचाल की भाषा का अर्थ ? बोलचाल की भाषा अभी बनी नहीं बनने को है। तो? इस बनने की क्रिया में अच्छा सूत्र हाथ लगा । राष्ट्रभाषा बनी नहीं तो राष्ट्र कैसे बना ? भारत को एक राष्ट्र कहता कौन है ? यदि इस देश में कोई राष्ट्र है तो मुसलिम । और दूसरा राष्ट्र कहाँ है ? बंगाली अलग, पंजाबी अलग; मद्रासी अलग, गुजराती अलग; हिंदू