पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/५९

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राष्ट्रभाषा ४६ वात बात में तुम्हें वे कितने इतिहास बता देते हैं। यदि उनकी पुकार कान में पड़ गई और तुम सचेष्ट हो गए तो तुम ही नहीं तुम्हारा राष्ट्र भी धन्य हो गया और फिर किसी में ताब न रही कि आँख दिखाए और तुमको एक तरह से जंगली सिद्ध करे । क्या कोई भी भारत का सच्चा सपूत परम खोजी अल्लामा शिबली नोमानी की इस खोज की दाद दे सकता है और क्षोभ तथा ग्लानि के मारे गलकर भस्म नहीं हो जाता-- हिंदू तो आज यह शिकायत कर रहे हैं कि मुसलमानों ने हिंदुस्तान में आकर मुल्क को तबाह कर दिया, लेकिन इन कोताह' नज़रों को मालूम नहीं कि मुसलमानों ने हिंदुस्तान की उफ्तादार जमीन को चमनज़ार बना दिया था। दुनिया जानती है कि हिंदू पहले पक्षों पर रख कर खाना खाते थे। नंगे पाँव रहते थे। जमीन पर सोते थे। बिन सिले कपड़े पहनते थे । संग मकानों में बसर करते थे । मुसलमानों ने श्राकर उनको खानेपीने, रहने सहने, वज़ालिबास, फर्श-फुरुश, जेब व जीनत का सलीका सिखलाया। लेकिन यह मौका इस मजमून के फैलाने का नहीं। (मकालात शिबली, अनवार प्रेस, लखनऊ, पृ० १६८) किंतु उनके परम शिष्य अल्लामा सैयद सुलैमान नदवी ने कृपा कर इस 'मजमून' को कुछ फैलाते हुए लिखा है कि--- इन मिसालों से मकसूद यह है कि मुसलमानों ने जब यहाँ कदम रखा तो अपने पूरे तमडुन व मुश्रासिरत', साज व सामान ८ १-संकीर्ण । २-ऊसर । ३-फुलवारी । ४--वेशभूषा । ५-डासनबिछा १६-~-सजधज । ७-ढंग । ८-अभिप्राय । १-संस्कृति । १०-व्यवहार ।