पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/५६

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राष्ट्रभाषा का स्वरूप सेंदुर परा जो सीस उधारा, अागि लागि चह जग अँधियारा। अस्तु, हमें यदि संसार के अंधकार को नष्ट करना है तो सिंदूर का स्वागत अवश्य करना है और करना है उसी 'अंगोछे और 'धोती' का सत्कार जिसमें विश्व का सारा चमत्कार सिमट- कर खिल रहा है। उसकी अवहेलना तो भारत कर नहीं सकता। भारत को तो सदा से प्लँगोटी' का गर्व रहा है। वह गाढ़े और 'खहर' को पूज्य समझता है कुछ घृणित या हेय नहीं। उसकी दृष्टि में बी उर्दू का गाढ़े की गोट' या 'गाढ़े की सारियों से नफरत करना ठीक नहीं। 'दुलाई में अतलस की गाढ़े की गोट' तो पुरानी पड़ गई । एक 'साहबेकलाम' का कहना है- अगर हिंदी ने रफ़्ता-रफ्ता हाथ पाँव निकाले तो यह ऐसा ही होगा जैसे बज़ादार' बीवियों में बड़े पायँचों की जगह जो खुशबदाई से खोंसे जाते हैं गाढ़े गज़ो की सारियों की रवाज दिया जाय जिसे देहात की कसीफ़ औरतें निस्मा साक तक लपेट लेती हैं । (इफदाते मेहदी, मारिफ प्रेस, आजमगढ़, पृष्ठ ३२६) अब तो आपने भी देख लिया कि वस्तुतः आज हमारे सामने न तो राष्ट्रभाषा का प्रश्न है और न हिंदू-मुसलमान का झगड़ा। है तो केवल हिंदी और अहिंदी का विवाद । राजनीति के क्षेत्र में भी और भाषा के क्षेत्र में भी एक ओर तो देश के परदेशी मुसल- मान हैं और दूसरी ओर राष्ट्र की सनातन जनता। नवमुसलिम मज़ब के हिसाब से तो उनके साथ हैं पर दुनिया के ख्याल, खून के विचार और जबान के लेहाज से हमारे साथ । क्योंकि 'गालिब' के खयालात से यह ग़लतफहमी नहीं होनी चाहिए १- सजीली | २-मद्दी । ३--आधी । ४---पिंडली । -मिथ्या धारणा ।