पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३९

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राष्ट्रभाषा २६ किए जाते और बकौले साहवे सियाल्मुताखरीन इनकी नकलें हिंद के उमरा व रूसा पास भेज दी जातीं और वह इसकी तकलीद को फ़ख जानते और अपनी अपनी जगह उन लफ्जों और मुहावरों को फैलाते। मुग़ल और उर्दू, पृ०६०) मौलाना अबुल कलाम आजाद जो महात्मा गांधी का कान भरते और डाक्टर मौलवी अब्दुल हक जो डाक्टर राजेंद्रप्रसाद के पीछे पड़ते हैं उसका एकमात्र रहस्य यही है कि कोई ठीक ऐसी ही अंजुमन बने जो उर्दू की भाँति ही हिंदुस्तानी (हिंदुस्थानी नहीं उर्दू) का प्रचार करे और अपना घर 'हिंद के उमरा व रूसा' की जगह हिंद के बालकों, बालिकाओं का छात्रों को बनाए। किंतु उक्त अंजुमन का परिणाम क्या हुआ ? यही न कि उर्दू देशद्रोह को लेकर आगे बढ़ी और सर्वथा विलायती बन गई। सुनिए शम्सुल उल्मा मौलाना मुहम्मद हुसैन आजाद सा मर्मज्ञ कहता है-- "उर्दू के मालिक उन लोगों की श्रौलाद थे जो असल में फारसी ज़बान रखते थे। इस वास्ते उन्होंने तमाम फ़ारसी बहरें और फारसी के दिलचस्प और रंगीन खयालात और अक़साम इंशापरदाजी का फोटोग्राफ़ फ़ारसी से उर्दू में उतार लिया। ताज्जुब यह है कि उसने इस कदर खुशअदई६ और खुशनुमाई पैदा की कि हिंदी भाषा के खयालात जो खास इस मुल्क के हालात के बमोजिन थे उन्हें भी मिटा दिया । चुनांचे खास ब ग्राम पपीहे और कोयल की आवाज़ और चंपा और चंबेली की खुशबू भूल गए; हज़ारा, बुलबुल और नसरन व १-रईसों। २-नुकरण । ३-छंद । ४-प्रकार | ५---- लेखन-कला। ६---सुव्यंजना । ७-सुशोभा | ८-अनुरूप ।