पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३६

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राष्ट्रभाषा पर विचार सन् १८६७ ई० में बिहार बंगाल की गवर्नमेंट ने हिंदी को दफ्तरों का खत करार दिया और इसी असना में वहाँ बंगाल की हमसायगी के असर से अँगरेज़ा तालीम को रोज़अफजूं तरक्की होती गई तो इस ( जवान उर्दू ) पर इस सूबा में मुरदनी छा गई । अदालतों और दफ्तरों की ज़रूरत से कौन अाजाद है ? हिदी रश्मखत ने अवाम -हिंदुत्तानी रस्मस्तुत की जगह लेनी शुरू की और खुवास" में, जो दिन पर दिन अँगरेजी तालीम पर मिटे जाते थे, देसी जवान की वक़त घटती चली गई। ( नुक शे सुलैमानी, पृ० २६०) हिंदुस्तानी रस्मख़त का अर्थ आप ही करें, हमें तो बस इतना भर कह देना है कि हम इस हिंदुस्तानी को पाषंड की ध्वजा अथवा पंचवटी की सूपनखा समझते हैं और इसीसे इसके कपट- रूप से सबको सचेत कर देना अपना परम कर्तव्य समझते हैं। स्वयं कंपनी सरकार के विधान हमारे सामने हैं और सामने है वह विवरण जो कंपनी सरकार की ओर से घर घर और गाँव गाँव से लिया गया था डाक्टर एफ बुचनन के द्वारा सन् १८०७ और १८१६ ई० के बीच में। सुनिए पहले कंपनी सरकार का आईन डुग्गी पीटकर बोलता है-- किसी को इस बात का उजुर नहीं होए के ऊपर के दफे का लिखा हुकुम सभसे वाकीफ नहीं है हरी ऐक जिले के कलीकटर साहेब को लाजीम है के इस श्राइन के पावने पर ऐक ऐक केता इसतहारनामा निचे के सरह से फारसी वो नागरी भाखा वो अलर में लीखाऐ कै १-बीच । २-पड़ोस । ३-अधिक । ४-सामान्यों । ५-विशिष्र्यो । ६--प्रतिष्ठा