पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राष्ट्रभाषा आश्चर्य नहीं। इस देव से उर्दू कितना भड़कती है इसके कहने की आवश्यकता नहीं। यह तो प्रतिदिन के अनुभव की बात है। राष्ट्रभाषा और राष्ट्रलिपि का जो लेखा लिया गया है वह टंकार कर कह रहा है कि सचमुच भारत की राष्ट्रभाषा नागरी और राष्ट्रलिपि भी नागरी ही है, किंतु देश के दुर्भाग्य और राष्ट्र दुर्दैव से हमारे कुछ देवता फरमाते हैं, "नहीं, राष्ट्रभाषा का नाम हिंदुस्तानी और राष्ट्रलिपि जो हो सो हो; उर्दू और हिंदी दोनों" तभी तो अपना भी कहना है कि 'दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम ।' हाँ, घबड़ाइए नहीं, चुपचाप खाले-खाले हिंदुस्तानी का ऊँट चराते रहिए, फिर देखिए वह किस करवट बैठता है । अच्छा, अभी तक तो आप हिंदुस्तानी भाषा का ही नाम सुनते आ रहे थे पर आज आपको जताया जाता कि अब हिंदु- स्तानी लिपि भी मैदान में आ चुकी है और वह शीघ्र ही राष्ट्रलिपि घोषित हाने वाली है। चकराने की बात नहीं, एक न एक दिन, उर्दू की भाँति ही अरवी लिपि भी हिंदुस्तानी का पर्याय होकर रहेगी। अरे; कहने-सुनने और बार-बार चिल्लाने से क्या नहीं 'आम' हो जाता ? और सो भी जब कि रेडियो भगवान् सहस्त्र फण से उर्दू के लिये बोलने को बीड़ा उठाए बैठे हैं और प्रति बड़ी किसी न किसी हिंदी शब्द को निगल रहे हैं। नहीं मानेंगे ? लीजिए तो 'हिंदुस्तानी रस्मखत' भी तैयार है । हिंदुस्तानी धार राष्ट्रभक्त अल्लामा सैयद सुलैमान नवी का हिंदुस्तानी (?) मरसिया है-