पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३४४

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राष्ट्रभाषा पर विचार फिर संस्कृति के मूलस्रोत में मग्न कर देना चाहिए जिसके अवगाहन से वह तृप्त और प्रसन्न हो जग को आह्लाद का पाठ पढ़ा सके। 'हिंदी मंत्रालय के साथ ही हमारा ध्यान लोकसेवा आयोग पर भी आप ही जाता है और हम सबसे पहले अपने लोकसेवक को ही अपने मेल में देखना चाहते हैं। सो तुरत होना तो यह चाहिए कि परीक्षा का माध्यम विकल्प रूप से हिंदी कर दिया जाय और परीक्षार्थी को यह छूट दी जाय कि वह चाहे हिंदी में प्रश्न का उत्तर लिखे चाहे अंग्रेजी में, साथ ही हिंदी में उत्तीर्ण । होना सभी के लिये अनिवार्य कर दिया जाय। हिंदी राज्यों में तो हिंदी को और भी शीघ्र महत्त्व मिलना चाहिए और उसको माध्यम के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए । शिक्षाविशारदों का ध्यान शिक्षाप्रणाली के दोषों को देखने में मग्न है। कभी वह कुछ विशेष पद्धति के प्रचलन में सफल होगा, ऐसा विश्वास किया जा सकता है। किंतु यह तो प्रायः सर्वमान्य सिद्धांत स्वीकृत हो चुका है कि शिक्षा का माध्यम स्वभाषा ही हो । प्राथमिक शिक्षा में किसी अन्य भाषा का बोध कराना कठिन होता है, अतएव माध्यमिक शिक्षास्थिति में राष्ट्रभाषा का प्रवेश हो जाना चाहिए । हिंदी प्रदेशों में उच्च शिक्षा का माध्यम हिंदी ही हो। जो लोग आज भी इसके लिये अंगरेजी का ही राग अलापते हैं भूल करते हैं । इस प्रकार की हीनभावना से राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता, उपहास तो इसमें है ही। निश्चय ही उच्च शिक्षा का माध्यम भी स्वभाषा वा राष्ट्रभाषा ही होगी। इसका निर्णय राज्य कर लेगा कि उसकी किस भाषा को कितना