पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३४१

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राष्ट्रभाषा में ढीलढाल ३३१ शिक्षाचार्य 'नुकसान' करने का अधिकार' चाहते हैं और अपढ़ लोग भी अंगूठे के बल पर उर्दू को उत्तरप्रदेश की क्षेत्रीय भाषा' घोषित कराना चाहते हैं। उर्दू को सदा से राजवल रहा है। वह शाहजहानाबाद के किला मुअल्ला की भापा रही है। उसको 'उर्दू की जवान था 'उर्दू-ए-मुअल्ला' यों ही नहीं कहा गया है । वह सच- मुच 'लाल किला' की शाही जवान रही है। अवध के बादशाह तो उसको अपनी राजभाषा ही घोषित कर चुके थे। किंतु वह कभी किसी प्रदेश की क्षेत्रीय भाषा नहीं रही। कभी कोई भी हिंदु. स्तानी, चाहे वह सुसलमान और फारसी-अरची का प्रगाढ़ पांडन ही क्यों न हो, उसमें प्रमाण न माना गया। मुगल सम्राट ने उसे पाला । सब कुछ हुआ पर कभी वह क्षेत्रीय भाषा' धोपित्त न हुई यह पद सदा नागरी हिंदी को ही प्राप्त रहा। अँगरेजी कूटनीति को 'नागरी' से द्रोह हुआ तो उसने उर्दू के हित के विचार ने 'हिंदुस्तानी' को सराहा । कारण यह था कि 'नागरिक' को महत्व मिलता तो नागरिक सहसा जागरूक हो उठते और फिर उन पर शासन करना कठिन हो जाता ! जो हो, इतिहास बताना है कि उर्दू सदा तूरानी विचारधारा की भापा रही और 'मुगल' का 'तूरानो दल' ही इसका नेता था। बादशाही जवान के नाते हिंदु- स्तानी दल' भी इसका सत्कार करता था और राजाश्रय के कारण इसकी पूछ भी अधिक थी। फलतः लमय पाकर वह पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा घोषित हुई। विधि की विडंबना काहा का प्रताप तो देखिए कि आज उसे कहा नहीं राष्ट्रपति' ले कहाया जा रहा है, पाकिस्तान के किसी भूभाग की नहीं, उचरप्रदेश जैसे प्रसिद्ध नागरी राज्य की 'क्षेत्रीय भाषा' ! जी. राष्ट्रपति उर्दू की माँग के कारण उर्दू को घोषित कर दें उत्तरप्रदेश की क्षेत्रीय भाषा' और उर्दू के लोग झठ बोल पड़ें कि हिंदी तो कहीं की भाषा नहीं, उत्तर-