पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३४

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२४ राष्ट्रभाषा पर विचार सं० ४५६ ( ई० सं० १७०६ ) के दानपत्र के हस्ताक्षर-~स्वहस्तो मम श्रीजयभट्टस्व' में प्राप्त होता है और टाकरी लिपि के साथ टक्क का लगाव है ही । भाषा के प्रसंग में टक्क का जो हाथ रहा है, लिपि के साथ भी वही काम करता है । देखिए न, पुराविद् कनिंघम साहब किस उल्लास से निष्कर्ष निकालते और अपनी कह सुनाते हैं । उनका कहना है कि प्राचीन नागरी लिपि जिसका व्यवहार बमियान से लेकर यमुना तट तक समान रूप से सब में और सर्वत्र हो रहा है टक्कों के द्वारा बनी और दाकरी कही जाती है। 'टाकरी' की भाँति 'गुर्जरी' वा 'गूर्जरी' लिपि का प्रयोग भी पाया जाता है पर कहीं उसके साथ ही साथ 'नागरी' का भी उल्लेख देखने में नहीं आया जिससे प्रतीत होता है कि गूर्जरी लिपि भी नागरी का ही एक रूप है। कैथी के संबंध में पहले कहा जा चुका है कि कैथी को भी पहले नागरी ही कहते थे-कैथी और नागरी का द्वंद्व तो बहुत इधर का है । देवनागरी और कैथी नागरी का भेद फिरंगियों का खड़ा किया हुआ हो तो इसमें तनिक भी ? _"The former importance of this race is perhaps best shown by the fact that the old Nagari characters, which are still in use throughout the whole country from Bamiyau to the banks of the Jamuna, are named Takari, most probably because this particular form was brought into use by the Taks or Takkas. I have found these characters in common use uoder the same name amongst the grain dealers to the svest of the Indus, and to the cast of Satlej, as well as amongst the Brahtraps of Kashrir and Kangra." (The Ascieat Geography of India, 1924, P. 175)