पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३३६

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राष्ट्रभाषा पर विचार कुछ हैं ही उसके वाङमय का इतिहास पुराना है और उसका शब्दभांडार भी बहुत कुछ संस्कृत शब्दों से भरा है। ऐसी स्थिति में उचित यह होगा कि सरकार की ओर से एक भारतीय शब्दकोष बने जिसका प्रकाशन नागरी में हो, पर शब्द जिसमें सभी देशभाषाओं के क्या बोलियों तक के हों। इस कोष से जहाँ एक ओर एकता का बोध होगा वहीं दूसरे प्रांत की जानकारी भी सहज में ही होती रहेगी। और सब से बड़ा लाभ तो यह होगा कि हमें इस बात का स्वयं बोध हो जायगा कि किस शब्द का क्या अर्थ कहाँ क्या होता है। स्मरण रहे, इसके अभाव में यदि 'कल्याण हो' के अभ्यासी बाबाजी ने दक्षिण में जाकर किसी सती विधवा से 'कल्याण हो' कह दिया तो अनर्थ कर दिया। वहाँ इसका अर्थ समझा जायगा विवाह हो। इसी प्रकार यदि काशी के पंडित जी आंध्र में जाकर किसी कवि की रचना को, भाव में आकर 'उत्कृष्ट' कह बैठे तो वहाँ इसका अर्थ समझा जायगा 'निकृष्ट' ही। निर्देश के लिए इतना बहुत्त है। तमिलभक्तों से प्रार्थना अंत में कुछ तमिलभक्तों से भी। और वह यही कि तमिल का अभिमान आप ही को नहीं हमको भी है। हम भी उनके साहित्य को थाती समझते हैं और उसके प्रसार का उपाय करते हैं। पर हम उसको प्रतिद्वंद्वी नहीं समझते । उसे पाते भी इस रूप में नहीं हैं। आप कह सकते हैं कि तमिल 'कन्या' है, 'कुमारी' है, 'कन्याकुमारी' है । हम कहते हैं ठीक है। पर वह 'माता' भी है। 'जय गजबदन षडानन माता' में जानकी उसी की तो वंदना