पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३३५

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दक्षिण भारत का प्रश्न ३२५ बहुत हैं पर हैं वे ब्राह्मण ही अधिक है और द्रोह के लिए उनका ब्राह्मण होना पर्याप्त है, किंतु इस पचड़े को सरकार कहाँ तक सँभाल पायेगी। लाख करने पर भी पंडित जवाहरलाल नेहरू ब्राह्मण ही माने जायेंगे किसी प्रकार अब्राह्मण इस जन्म में तो हो नहीं सकते। निदान जन्म का जंजाल तो इस प्रकार जाने से रहा; पर शासन की ओर से जो कार्य शीघ्र ही किया जा सकता है वह है सब को यह समझा देना कि स्वीटजरलैंड की व्यवस्था भारत में क्यों नहीं चल सकती। राजनीति के क्षेत्र में यदि इतना हो गया तो द्रविड़िस्तान का महल गिरा अन्यथा धूमधाम तो कुछ दिन अवश्य रहेगी। संभव है हवा अनुकूल होने पर पाकि- स्वान की भाँति कभी हो कर भी रहे। पर यह तो कुछ प्रसंग के बाहर की बात हुई । भाषा की दृष्टि से सरकार यदि इतना कर दे तो वह भी बहुत है कि- १-भारत की भाषा-पड़ताल फिर से हो। और इतना भी न कर सके तो उसका संशोधन तो अवश्य ही अपने विद्वानों द्वारा करा ले। उसे भूलना न होगा कि 'लिंग्विस्टिक सर्वे श्राव इंडिया' के मूल में कुछ राजनीति भी है, और ऐसी राजनीति जिसको जाने बिना वास्तव में 'भाषा' की स्थिति समझ में नहीं आ सकती । यह इसलिए भी कहा जा रहा है कि कांगरेस ने मान लिया है कि भाषा के आधार पर प्रांत बनें। सरकार की घोषणा से बहुत कुछ काम बन सकता है। विवाद से उलझन पैदा होती और वैमनस्य बढ़ता है । तत्त्वबोध जो होना था गया। अब उसके लिए विवाद नहीं। २-भारत की संस्कृति एक है, पर उसके देशगत संस्कार भी