पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३३२

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राष्ट्रभाषा पर विचार ३२२ मान रहे हो ? उठो, जागो और सचेत हो जाओ कितने दुःख और लज्जा की बात है कि जिस पूंगीफल का हमारे जीवन में इतना महत्व है और जिस नारिकेल के बिना हमारा कोई शुभ कार्य ही नहीं सधता, उसी के जन्मदाता पादप का हमारी कविता में कोई गुणगान नहीं; केरल के कल्पद्रुम नारियल को देखकर भाव उठा यदि कवि होता । सुपारी के पेड़ की शोभा को देखकर खीझ उठी कि लोग 'सरो के पीछे क्यों मर रहे हैं ? इसकी आभा को क्यों नहीं देखते ? भाव यह कि हिंदी का व्यापार-क्षेत्र कहीं अधिक व्यापक होना चाहिए और 'दखिन पवन' के साथ ही कुछ दक्षिण का रूप भी उसमें आना चाहिए। मलयानिल की चर्चा मलय के वर्णन के बिना उधार है । आज कलम उठे तो ऐसी चले जिससे भारत का रूप सामने आ जाये, कथा बने तो ऐसी बने जिसमें भारत का समूचा जीवन बोल उठे । यदि ऐसा न हुआ तो कविता क्या हुई कोरी कल्पना की उड़ान और निरी वासना की तृप्ति । किंतु यह सब तभी होगा जब आप भी कुछ डोलना, कुछ धूमना, और कुछ भ्रमण करना सीखेंगे। प्रतिभा पर्यटन चाहती है। रहे अध्यापक और संपादक । उनकी तो लीला ही अपार है। अँगरेजी की सुन लीजिए, कुछ हिंदी के नाते कभी संस्कृत की भी जान लीजिए । और बहुत हुआ तो कभी बँगला और कभी मराठी का भी नाम कुछ सुन लीजिए; पर भूल कर कभी उन भाषाओं और साहित्यों की चर्चा न कीजिये जिनमें शंकर, रामा- तुज, मध्व और वल्लभ का शरीर पला और शब्द ब्रह्म को परखा था। भाषाविज्ञान के प्रसंग में इन भाषाओं के विषय में अंगरेजी से उल्था कर लेने का परिणाम यही होगा कि वहाँ के किसी