पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३२९

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सो इतना दक्षिण भारत का प्रश्न ३१६ साधना ठीक नहीं । हाँ, विधान के अनुसार भाषा बनाने का प्रयत्न करना साधु है । किसी 'सभा' या परिषद्' का कर्तव्य इस समय क्या है, इसे हम क्यों कहें। हमारा कहना तो यह है कि अब 'संमेलन' को करना क्या चाहिए और किस प्रकार राष्ट्रभाषा की डगमगाती नैया को खेकर पार करना चाहिए । तो इस यात्रा से स्पष्ट हो गया कि दक्षिण भारत के लोग उस हिंदी को चाहते हैं जिसे लेकर संमेलन राष्ट्रजीवन में यहाँ तक आगे बढ़ा है। अतएव इस समय उनसे या किसी अन्य से यह कहना कि हिंदी पढ़ो, पुराने पाठ को दोहराना भर है। इससे कुछ विशेष बनता नहीं दिखाई देता। हाँ, असंयम और धातुरी के कारण कुछ बिगड़ अवश्य सकता है । निदान इससे अलग रह करना यह है कि- १-अपनी परीक्षाओं का प्रबंध दक्षिण भारत में ठीक करे और वहाँ की जिस तिस परीक्षा को मान्यता न दे। साथ ही इस बात को भी दृष्टि में रखे कि 'दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा' की परीक्षाओं को मान्यता देने में जो बाधायें उपस्थित हैं क्या वे किसी प्रकार दूर नहीं हो सकी। इसके उपाधिकारी इसके लिये लालायित हैं और सम्मेलन' की परीक्षाओं में बैठना चाहते हैं। २-सम्मेलन प्रयाग में शिक्षकों की शिक्षा का प्रबंध करे। कारण यह है कि दक्षिण भारत के लोग यहाँ की हिंदी को सीखना और अपने शिष्यों को सिखाना भी चाहते हैं। भूलना न होगा कि दक्षिण भारत हिंदुस्तानी प्रचार सभा के प्रचारक ही इस समय प्रायः सरकारी शिक्षक का कार्य कर रहे हैं और अपनी त्रुटि की पूर्ति के लिये अच्छी हिंदी को सीखना