पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३२३

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दक्षिण भारत का प्रश्न ३१३ सुंदर सुबास बास, कोमल कला-निधान, जानत तहाँ न ताहि चाहि चित श्रागरी । देवी देस द्रविड की सुंदरी फिबिड़ नेह, गुनन अनूप, रूप-श्रोपन उजागरी। अस्तु, यह 'शिष्ट-मंडल इसी 'देवी' की उपासना में यह तीर्थ- यात्रा कर रहा है। इसका ध्रुव-विश्वास है कि जिस भूमि की रब ने राम को 'राम' बनाया उसी भूमि के रजपूत इस राज्य को भी 'राम राज्य' बनायेंगे और उनकी पूत वाणी के योग से यह वासी भी राजवाणी बनेगी। आज कहते हर्ष होता है कि इस यात्रा से, पुण्य रज के दर्शन से, यह विश्वास और दृढ़ हो गया और रह-रह कर मद्रास-पति, मद्रास के मेयर, डाक्टर चेरियन का यह उद्घोष हृद्य में उल्लास पैदा करता जा रहा है कि- पाँच वर्ष में हम आपको हिंदी में भी पछाड़ देंगे। कौन कह सकता है कि 'द्रविड़ ने संस्कृत के क्षेत्र में भी यही नहीं किया ? नाम गिनाना व्यर्थ है, शंकराचार्य, रामानुजाचार्य आदि प्राचार्यों का नाम ही पर्याप्त है। किंतु आज ? आज ही की बात तो आप सुनना चाहते हैं ? सो स्वामी शंकर का प्रांत तो आज भी हिंदी में कमाल कर रहा है। केवल इस दृष्टि से सभी प्रांतों में आगे है। वहाँ 'हिंदुस्तानी' के प्रतिकूल दृढ़ मोरचा बँधा है और हिंदी के मार्ग में कोई ऐसी रुकावट नहीं जिसका उल्लेख हो । हाँ, पड़ोसी तमिलनाडु की बात कुछ निराली है। वहाँ कुछ ऐसे भी महानुभाव हैं जो विडिस्तान का स्वप्न देख रहे हैं और किसी प्रकार दिल्ली से अपना पिंड