पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३२२

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२२ दक्षिण भारत का प्रश्न दक्षिण भारत की यात्रा अंधकार में हुई और अंधकार में ही उस देवी के दर्शन हुये जिसके साक्षात्कार के लिये यह जन इतने दिनों से लालायित था। दक्षिण में परदा नहीं होता पर वहाँ की देवी का निवास जिस मंदिर में होता है वह किसी विशाल गढ़ से किसी प्रकार कम नहीं होता। कितने प्राचीरों को चीरकर, कितने खंडों के भीतर कितनी दूर से, कितने टिमटिमाते दीपों के क्षीण प्रकाश में, कैसी आरती की आभा में, कितना शुल्क देने पर, उसकी कैसी झाँकी, कितने काल के लिये मिलती है, इसका वर्णन किसी कवि से सुनिएगा। यहाँ बस जानिये इतना ही कि हिंदी साहित्य संघ की सहायता से मद्रास में जो कुछ हुआ वह तो उक्त नगर की बात ठहरी, उसके अतिरिक्त वास्तव में शेष स्थानों में 'दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सहयोग और उसके कुशल कार्यकर्ता श्री भालचंद्रजी आप्टे की पंडाई में हमें उस देवी का दर्शन मिला जिसके संबंध में कभी इस जन ने लिखा था-- हम और कुछ नहीं इसी 'तेज' की खोज में 'दक्षिण' जा रहे हैं। हमें इसकी प्राप्ति होगी, इसमें संदेह नहीं। कारण, हमारा 'देव' भी तो यही कहता है- देवता दरसियत, देवता सरस 'देव' इहि विधि और नहीं देवी, नरी, नागरी। सहज सुभाइ सचि संचि रुचि सील मति, कोमल विमल मन सोभा-सुख सागरी।