पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३२१

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राष्ट्रभाषा की उलझन ३११ को भी। यदि आप ऐसा करेंगे तो अपने कर्तव्य का पालन करेंगे, राष्ट्र का मंगल करेंगे और करेंगे राष्ट्रभाषा का परमहित । राष्ट्र- के साथ ही राष्ट्रसाहित्य का निर्माण तभी ठौर ठिकाने से होगा जब हमारा चित्त इन उलझनों से मुक्त होगा। अस्तु, इसी का निर्देश यहाँ किया गया है। वैसे योजना की इति कहाँ ? अभी करने को इतना ही बहुत है । तथास्तु । भाषा