पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३१८

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३० राष्ट्रभाषा पर विचार की ही क्यों न कहें ? उनका नाम ही राष्ट्रीयता का पर्याय है । इन्हीं का कहना है:- इस किताब के नेफ, जोशीले, सच्चे और जानदार खयालों को हर जबान में तर्जुमा करना चाहिए। खास कर नागरी और अँगरेजी में इसका एक एडीशन जल्द से जल्द छपना चाहिए, जिसको देख कर हिंदू भाई एक मुसलमान शायर के जानदार देश प्रेम को समझ जायें, जो पठान होने और देश भक्ति के लिहाज़ से पश्तो जबान सरहदी शायर खुशहाल खाँ 'खुटक' और बायरन की तरह हैं। जिसे संदेह हो 'सागर' निजामी की 'रस-सागर' पुस्तक की भूमिका में पृ० १३-१४ पर खोल कर इसे बाँच लें और जान लें कि 'नागरी लिपि ही नहीं भाषा भी है। परंतु वाह रे हमारा व्यामोह, और वाह री हमारी शिक्षा कि हम पढ़-लिख कर इतने सथाने हो गए कि काशी-नागरी प्रचारिणी सभा के लोग भी भूल गए कि नागरी एक भाषा भी है और 'नागरी भाषा का प्रचार करना उसके 'उद्देश्य' में है। बात कलंक की है और है सयानों की दृष्टि में मूढ़ता की, पर कहे बिना रहा भी नहीं जाता कि यदि राष्ट्र सचेत होता और इस 'नागरी' के इतिहास को समझ पाता तो राष्ट्रभाषा का सारा टंटा दूर हो जाता। स्मरण रहे, अब आप की घोषणा के अनुसार 'हिंदुस्तानी' आप की राष्ट्रभाषा नहीं रही, पर आप की ग्रियर्सनी पड़ताल और उसी की छायाजीवी पोथी में आपका होनहार बालक पढ़ेगा उसी हिंदुस्तानी को राष्ट्रभाषा । कहिए आप कहाँ हैं और आपकी स्थिति क्या है। कुछ इसकी भी सुधि ? अभी यह जन अहमदाबाद गया था ! वहाँ की प्रसिद्ध 'गुजरात विद्या सभा' के एक विद्वान ने पूछ ही तो दिया 'हाई हिंदी' को हिंदी में क्या लिस्ने ? कहिए क्या हमारा आपका यह