पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३१३

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राष्ट्रभाषा की उलमान ३०३ नहीं कि संविधान में हिंदी राष्ट्रभाषा' नहीं मानी गई है। वह तो राज्यभाषा है। अथवा वों कहिये कि वह संघभाषा है। संविधान की दृष्टि में प्रत्येक प्रांत' एक राज्य है पर प्रत्येक प्रांत की एक राज्य भाषा नहीं। अनेक राज्यों के संघ का नाम 'भारत है। स्वयं भारत के ये अंग हैं ऐसा नहीं। इसी से कुछ घपला भी है। यदि भारत एक ठोस राष्ट्र माना गया होता तो 'राष्ट्रभाषा' का नाम भी शासन को मान्य होता; परंतु कारणविशेषवश ऐसा नहीं किया गया तो भी हमें यह कहना ही पड़ता है कि शासन की इस अवज्ञा के कारण राष्ट्रभाषा' का नाम मिट नहीं सकता और राष्ट्रपति के साथ ही यह भी चलता रहेगा और जनसमाज में खुलकर घोषणा करता रहेगा कि तुम 'संघ' नहीं 'राष्ट्र हो । राष्ट्रभाषा-व्यवस्था-परिषद् में राष्ट्र', 'राज्य' और 'जाति' शब्द पर गहरा विचार हुआ और अंत में 'राष्ट्र' शब्द ही सर्वसम्मति से ग्राह्य हुआ ! 'राष्ट्र' की सच्ची व्याख्या भी एक राष्ट्र के ही पक्ष में मान्य ठहरी। अर्थ यह कि भारत सचमुच एक राष्ट्र है और फलतः उसकी एक भाषा भी 'राष्ट्रभाषा ही होगी। सिद्धांततः वह सब की भाषा होगी, व्यवहार में भले ही वह सब की वाणी न बने। राष्ट्र से जिस किसी का संबंध होगा वह अवश्य ही राष्ट्रभाषा का सत्कार जम कर करेगा। केवल अपनी देशभाषा से उसे संतोष न होगा। भारती संतान के नाते वह उस भारती का अध्ययन अवश्य करेगा जिसे राष्ट्रभाषा का पद मिला है। कीजि- येगा क्या भारती शब्द का अर्थ ही भाषा हो गया है। देखने में तो भारत से भारती का निर्माण उसी न्याय से हो रहा है जिससे हिंदुसे हिंदीया गुजरात से गुजराती, पर तो भी भारत की विशेषता यह है कि वह भाषा के पर्याय के रूप में भी प्रयुक्त होता है। हम