पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३१

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राष्ट्रभाषा टाँकने की बात यह है कि डाक्टर मार्शल संस्कृत से इसे बहुत भिन्न नहीं पाते और कहते भी इस भाषा को नागरी ही हैं। इसकी निरुक्ति के विषय में वे जो कुछ कहते हैं वह भी निराधार नहीं है। हाँ, कुछ उलझा हुआ अवश्य है। नागरी का प्रथम प्रयोग उधर ही तो हुआ था? डाक्टर मार्शल ने (सन् १६६८ से १६७२ ई०) आलमगीर औरंगजेब के शासन में नागरी भाषा के विषय में जो कुछ सुना- गुना उसे ही लिख दिया। वह प्रत्यक्ष ही संस्कृत के निकट और भाषा के साथ है । अब अँगरेजी शासन में विश्व-उजागर तबलीगी नेता ख्वाजा हसन निजामी देहलवी की वाणी सुनिए । वे तो पुकार कर कहते हैं- यह हिंदी जवान ममालिक' मुतहदा अवध और रुहेलखंड और सूदा बिहार और सूवा सी० पी० और हिंदुओं की अक्सर देसी रिया- सतों में मुरव्वज है। गोया बंगाली और बरमी और गुजराती और मरहठी वगैरा सब हिंदुस्तानी जवानों से ज्यादा रिवाज हिंदी यानी नागरी ज़बान का है। करोड़ों हिंदू औरत मर्द अब भी यहाँ ज़बान पढ़ते हैं और यही जबान लिखते हैं। यहाँ तक कि तकरीबन एक करोड़ मुसलमान भी जो सूवा यू० पी० और सूबा सी० पी० और सूबा बिहार के देहात में रहते हैं या हिंदुओं की रियासतों में बतौर रियाया के श्राबाद हैं और उनको हिंदू रियासतों के खास हुक्म के सवत्र ते हिंदी जबान लाज़मी तौर से हासिल करनी पड़ती है, हिंदी के सिवा और कोई ज़बान नहीं जानते। ( कुरान मजीद के हिंदी अनुवाद की भूमिका) १-प्रान्त। २-संयुक्त । ३-प्रचलित। ४--लगभग। धू-अनिवार्य।