पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३०७

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२१-राष्ट्रभाषा की उलझन सरल बरन भाषा सरल, सरल अर्थमय मानि । तुलसी सरलै संतजन, ताहि परी पहिचानि ।। राष्ट्रभाषा की गुत्थी सुलझ गई, पर उलझन अभी नहीं गई। क्यों नहीं गई, इस पर विवाद हो सकता है, पर नहीं गई यह तथ्य की बात है, भ्र व सत्य है। आइये इस पुण्य पर्व पर, इस पुण्य भूमि और पुण्य धारा में निमग्न हो हम इसी उलझन को समझने तथा समझाने की चेष्टा करें और विश्व को बता दें कि पर्व क्या है, भूमि का प्रभाव और सलिल का 'ज' क्या है और क्या है ऋषिमुनि का 'परिग्रह' अथवा साधु-संत का प्रसाद । कहते हैं हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं हुई। सच कहते हैं। वर्तमान परिस्थिति में वह राष्ट्रभाषा हो भी नहीं सकती थी। वह राष्ट्र- भाषा घोषित हो गई ? सो भी नहीं हुआ। सच पूछिये तो अभी इतना ही हुआ है कि शासन ने यह निश्चित कर दिया है कि अंगरेजी राजभाषा नहीं रह सकती, कभी न कभी उसे इस पद से अवश्य हट जाना है। साथ ही इतना और भी निश्चित हो गया है कि हो न हो हिंदी ही यहाँ की प्रमुख भाषा है और वहीं किसी प्रमुख पद पर और इसी नाम से आसीन होगी। हिंदुस्तानी और उर्दू को यह पद प्राप्त न होगा और न किसी दूसरी देशभाषा को ही यह पद दिया जायगा। 'देशभाषा अपना पुराना शब्द है, इसके स्थान पर आज 'प्रांतभाषा' शब्द का व्यवहार होता है और फलतः उसी को लोग समझते भी हैं। परंतु सच पूछिये तो बहुत