पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३०३

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मौलाना आजाद की हिंदुस्तानी २६३ मौलाना को अरबी अलफाज़ और फारसी तरकीब का खास शौक है, लेकिन निरा शौक ही नहीं बल्कि श्राप उनको निहायत सलीका और उस्तादी के साथ इलैमाल करते हैं। श्रापकी इबारत में इल्मी और फ़िलसफ़िवाना उमक होता है। बड़े बड़े मफहूम को निहायत सहूलत के साथ श्रदा करते हैं, और फिर इस तरह कि निहा- यत आसानी से ज़हननान हो जाते हैं। ( तनवीर अब, नेश- नल प्रेस, इलाहाबाद, सन् १६.३७ ई०, पृ० २७६) जनाब सगीर अहमद जान एम० ए० ने जो कुछ लिखा है उर्दू के रंग में लिखा है । मौलाना अबुलकलाम आजाद' की कलम का लोहा कौन नहीं मानता ? पर एक सच्चे आई सी० एस० का फैसला तो यह है- सर सैयद, हाली और अलीगढ़ तहरीक के दूसरे रहनुमाओं की तसानीफ' में अरबी-फारसी के मोटे-मोटे अलफाज़ बहुत कम मिलेंगे । वह हचा-उल-उसा वही जबान इस्तेमाल करते जो देहली और यू०पी० में बोली जाती । अरदी और फारसी के अलफाज़ अशद जरूरत के वगैर कभी इस्तेमाल न करते। दूसरे अँगरेज़ी के अलफाज इस्तेमाल करने से इन्हें गुरेज न था। नतीजा यह कि इनकी ज़बान ऐसी थी जिसे हिंदू और मुसलमान दोनों बासानी ११ समझ सकते थे। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने जो त तहरीर रायड की उसमें मुशकिल और गैरमानूस'२ अरबी और फारसी अलफ़ाज़ की भरमार थी। उर्दू में अँगरेजी अलफाज़ इस्तेमाल करने के वह सख्त नुस्खा- लिफ५३ थे। आम मुरवज' अँगरेज़ी अलमान को तर्फ १ करके १ -पद योजना । २-गाम्भीर्य । ३-विचारों। ४-सुगम ! ५-अांदोलन । ६-नेताओं ! ७-रचनाओं । -भरसक ! ६-अत्यावश्यक । १०-~संकोच । ११ – सरलता से। १२-अपरि- चित । १३----प्रतिकूल । १४---प्रचलित । १५-छोड़ !