पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३०२

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२६२ राष्ट्रभाषा पर विचार के मुद्दई हैं कि वह अाज तक अपने मुतफरिफ' मज़ामीन के जरिये से इस फ़र्ज़ को बई शाइस्ता अंजाम देते रहे हैं कि कुान पाक के जुमला अल्फाज़ उर्दू ज़बान में रायज कर दिये जाने चाहिएँ । ( उर्दू के असालीब बयान, इब्राहीम इमदाद वाहकी, स्टेशन रोड, हैदराबाद दकन, सन् १९२७ ई०, पृष्ठ १०५-६) इप्ती को एक दूसरे विद्वान् के मुह से सुनिए। आप भी उसमानिया विश्वविद्यालय के एम० ए० हैं और नाम है आपका सैयद अली हसनैन साहब 'ज़ बा। आपका कहना है-- अबुलकलाम आज़ाद का नाम अदक उर्दू को रवाज देने की वजह से हमेशा लिया जायगा | हालाँ कि इस हलके में ... 'उर्दू को बिल्कुल अरबी या फारसी की तरफ रागिब करने का जो रिवाज है, उससे उर्दू को बजाय फायदे के नुकसान ही पहुंच रहा है। मगर मौसूफ ने अपने 'अलहिलाल' में सियातत और मज़हब के मजा- मीन लिखकर इस तर्ज़ का सबसे बेहतर हक़ अदा कियो । (उर्दू अदब बीसवीं सदी में, मजलिस इलमिया तियलसानयीन उसमानिया, सन् १९३७ ई०, पृष्ठ ३६) उसमानिया विश्वविद्यालय की शोध आपके सामने है। इसीको और भी अच्छे ढङ्ग से सुनना हो तो इलाहाबाद के विश्वविद्यालय में आ जाइये । यहाँ आपको पढ़ाया जायगा कि १-विभिन्न । २-लेखों। ३-यथार्थ रूप में। ४-दुरूह । ५-प्रवृत्त । ६-राजनीति | ७-अादरणीय (अाजाद)