पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३०

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२० राष्ट्रभाषा पर विचार देवनागरी का नाम दिया और नागरी सकुचाकर वहीं रह गई। आज तो कोई कभी कैथी को नागरी कह नहीं सकता, पर आज से सौ वर्ष पहले कैथी और नागरी में कोई बैर न था। कभी कायस्थ और नागर एक थे तो कभी कैथी और नागरी भी एक ही थीं, किंतु फिरंगियों की कृपा से क्या हो गया ? भेद-बुद्धि क्या नहीं कर सकती! लिपि की बात तो यों ही, यह दिखाने के निमित्त कह दी गई कि आप ताड़ सकें कि गत सौ सवा सौ वर्षों में भाषा के क्षेत्र में कितना गड़बड़झाला हुआ है और हम कैसे उसी गड़बड़झाले में उलझकर पंडिताई झाड़ रहे हैं और भाड़ बताते हैं अपने पूर्वजों को। हाँ, तो देखिए यह कि डाक्टर जान मार्शल भारत में भ्रमण कर रहे हैं और नागरी भाषा पर लिख भी रहे हैं कि वह संस्कृत से वहुत भिन्न नहीं है और उज्जैन नगरी के नाम पर नागरी वनी है। प्रयाग विश्वविद्यालय के इतिहास-विभाग के अध्यक्ष सर शफात अहमद खाँ ने उनके ग्रंथ का संपादन किया है और उसके नागरी के प्रकरण को काट-कपटकर इतना कम कर दिया है कि वस्तु- स्थिति का ठीक ठीक समझना कठिन हो गया है। परंतु फिर भी -"It (Naggary Language ) is not very much differing from the Siascreet ( Sanskrit ) This called Naggary ( Nagri) from the same of a city which was called Urgia Naggary (Ujjaia Nagari) about 1700 years since, which city is now called Bonatres." (Joha Marshall in India ) p. 423