पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/३

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दो शब्द प्राचार्य श्री चंद्रबली पांडेय जी की लोकप्रिय कृति 'राष्ट्रभाषा पर विचार का प्रकाशन करते हुए हमें बड़ी प्रसन्नता हो रही है। इसके दो संस्करण स्थानीय सरस्वती मंदिर जतनबर से प्रकाशित हो चुके हैं और विद्वानों तथा सामान्य जनता ने समान रूप से इसका स्वागत किया। पांडेय जी की इच्छा थी कि सभा इस प्रकाशन को अपने हाथ जिसका सभा सहर्ष स्वागत किया। इसी के परिणाम- स्वरूप यह रचना सभा से प्रकाशित हो रही है। प्रस्तुत संस्करण में एक लेख बढ़ा दिया गया जो सं० २०१० में सभा के हीरक-जयंती- समारोह के अवसर पर राष्ट्रभाषा संमेलन के संयोजक पद से दिया गया पांडेय जी का भाषण था। प्रस्तुत संग्रह के सभी लेख श्राज से दशाब्दियों पूर्व परिस्थिति- विशेष पर लिखे या पढ़े गए थे। इनमें तत्कालीन वातावरण की कटुता और तीव्रता का प्रभाव परिलक्षित होता है। श्राज वातावरण और परिस्थितियाँ बहुत कुछ बदल चुकी हैं परंतु अब भी इनकी आवश्यकता और उपयोगिता बनी हुई है। कारण यह है कि हिंदी का विरोध अभी भी कम नहीं हुआ है। हाँ, पहले संवर्ष राष्ट्रभाषा हिंदी का उर्दू और हिंदुस्तानी से था, आज राजभाषा हिंदी का संघर्ष विदेशी भाषा अँगरेजी से है जिसे अंतरराष्ट्रीयता के नाम से कुछ लोग हमारे ऊपर थोपना चाहते हैं। उस समय देश के गण्यसान्य नेता और शिक्षित जनता भी हिंदी को राष्ट्रभाषा मान चुकी थी, झगड़ा केवल नाम, रूप और लिपि को लेकर था; अाज भारत के संविधान में नागरी लिपि में