पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२९६

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राष्ट्रभाषा पर विचार इत्तफाक' का कदम बढ़ाये और बाईस करोड़ हिंदुओं के साथ एक हो जायें। मुसलमानों के लिये ऐसा करना उनके मजहबी अमल में से था । (.खुतबात अबुलकलाम आजाद, अबिस्तान लाहौर, पृष्ठ ५१)। मौलाना अबुलकलाम 'आजाद' ने 'मजहब' की प्रेरणा से । हिंदूमुसलिम-एकता का नारा बुलंद किया और लोगों को कुरान का पाठ पढ़ाया तो इसमें आश्चर्य क्या ? अचरज की बात तो यह है कि आज हम इतना भी नहीं समझते कि हमारे मौ० अबुलकलाम 'आज़ाद' वास्तव में जो कुछ कर रहे हैं 'इसलाम के लिये ही कर रहे हैं। उनका स्पष्ट कहना भी यही है। धोखाधड़ी से उनका काम नहीं। उनकी तो खुली घोषणा यह है- मुसलमान हूँ, और फख के साथ महसूस करता हूँ कि मुसल- मान हूँ। इसलाम के तेरह सौ बरस की शानदार रवायतें मेरे बरसे में आई हैं । मैं तैयार नहीं कि इसका छोटा हिस्सा भी जाया होने दूं। इसलाम की तालीम, इसलाम की तारीख, इसलाम के उलूम व 'फुनून, इसलाम की तहजीब, मेरी दौलत का सरमाया है और मेरा फर्ज है कि इसकी हिफाजत करूँ । बहैसियत मुसलमान होने के मजहबी और कलचरल दायरे में अपनी एक खास हस्ती रखता हूँ और मैं बरदाश्त नहीं कर सकता कि इसमें कोई मदाखलत करे। लेकिन इन तमाम एहसासात के साथ मैं एक और एहसास भी रखता हूँ जिसे १-एकता । २-पाचरण । ३-गर्व। ४–दाय, उत्तराधिकार । ५-नष्ट । ६-विद्यायें । ७-कौशल । ८-पूँजी । ६-इस्तक्षेप । १०-भावों।