पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२९५

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२०-मौलाना आजाद की हिंदुस्तानी मुसलिम-शिरोमशि मौलाना अबुलकलाम 'आज़ाद' अन्म से हिंदी नहीं, अरबी हैं । अरब के पवित्र धर्म-तीर्थ भक्का मोअज्जमा में सन् १८८८ ई० में आपका उदय हुआ और आपका बचपन भी वहीं बीता। आपकी माता भी मदीना मुनव्वरा के प्रतिष्ठित कुल की संतान थीं और अरबी के अतिरिक्त कुछ जानती भी न थीं। इस प्रकार मौलाना अबुलकलाम 'आजाद' की शिक्षा-दीक्षा सब अरबी में ही हुई और अरबी विचारधारा ही उनके मस्तिष्क में बहती रही। मौलाना के जीवन का ध्येय तब से अब तक क्या रहा है, इसे उन्हीं के मुँह से सुन लीजिये और फिर देखिए यह कि उनके द्वारा राजनीति के क्षेत्र में कब क्या हुआ है और क्यों हुआ है। आपका स्वयं कहना है- दोस्तो ! मैं अपनी जिंदगी का अगर कोई काम समझता हूँ तो वह यही है। मुझको यकीन है कि मैं हिंदुस्तान के उन ईसानों में हूँ जिन्होंने इंसानों को किताब अल्लाह' की तरफ बुलाया है । मैं अपने लिये कोई नाचीन खिदमत समझता हूँ तो वह सिर्फ यही है । जब मुसलमान अपने हिंदू भाइयों से तमाम कामों में अलग थे, अलीगड़ की मुसल्लमा कौमी पालिसी यही समझी जाती थी कि वह हिंदुओं से अलग रहें, तो मैंने दावत दी थी कि अगर वह हिंदुस्तान की जिंदगी में बहैसियत मुसलमान होने के अपने तमाम अजीमुश्शान फरायज अंजाम देना चाहते हैं तो उनका फर्ज होना चाहिए कि १-कुरान । २--संपूर्ण । ३-गौरवशाली कर्तव्य । ४---पूर्णता ।