पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२९३

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हिंदुस्थानी का भँवजाल २८३ भाषा पढ़ें। यहाँ की ७०० वर्ष पहले की पुरानी भाषा वहाँ किस काम की समझी जायगी। स्वप्न की बात नहीं परिस्थिति यह है- उन फारती अलफाज से जिन्हें हम फारसी समझ कर फारसी में इत्तैमाल करते हैं, बहल ईरान उन पर चौंकते हैं और हमारी हँसी उड़ाते हैं । याने वह अलफाज फारसी नहीं रहे। हमने उर्दू में उनको दूसरे माने दे दिए हैं; और अब वह लफ्ज बिल्कुल हमारे हो गए हैं। श्राप उनको अपनी जबान से निकाल दीजिए श्राप के हाँ से निकलकर वह बिल्कुल निघरे हो जायँगे; क्योंकि फारसी या अरबी इन मानों में उन्हें कबूल न करेगी 1 (हिंदुस्तानी रिसाला, वही, पृष्ट ६-७) स्वर्गीय सैयद सज्जाद हैदर यलदरस' साहब की साखी श्राप के सामने है। अब आप ही कहें, किस पड़ोस से नाता जोड़ने के लिये आप उनका 'दस्तक ले रहे हैं। आप उदार हैं तो इन 'निघरों' को घर में रहने दें पर कृपा कर घर-घर फैलाने का स्वप्न न देखें। उर्दू ने कैसे-कैसे काम किए हैं इसको कहने का यह अवसर नहीं, समय नहीं। तो मी इतना तो देख ही लें कि श्राप का 'यहाँ उर्दू में 'हाँ' हो गया और इसी रूप में वह 'उर्दू में चल भी सकता है। है तो यह श्राप ही का पर यह आपकी नहीं मानता। यही दशा इसकी सबके साथ है। अरब इसकी सुन नहीं सकते, ईरानी इसे मान नहीं सकते, पर बलिहारी है आप की बुद्धि की जो आप इसी को अपनाते नहीं सब के सिर लादते हैं और इस लोभ से कि आप अरब और ईरान से नाता जोड़ सकें । अरे ! महात्माजी की बात महात्माजी के साथ गई। उनकी शक्ति भी किसी में न आ सकी। फिर महात्माजी की दुहाई देकर आप मूक जनता से कराना क्या चाहते हैं ? वह महात्माजी के