पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२९२

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राष्ट्रभाषा पर विचार है। अगर हिंदू और मुसलमानों को श्रापस में एकदिल होना है तो उनको एक ही जबान और रस्मुल्खत रखना होगा। यही वहदत खयाल पैदा करने और आपस में मुहब्बत इखलास कायम करने का बेहतरीन ज़रिया है। (जमाना, जुलाई सन् १९३७ ई०, कानपुर पृष्ठ ३२) श्री सैयद इन हसन शारिक साहब नेता नहीं, बादी नहीं, लीडर नहीं कि आप उनकी झट सुन लें । लेकिन जो कुछ कह रहे हैं वही आज चारों और सुना जा रहा है । सौभाग्य से महात्मा जी के जीवन में उन्हीं के सामने एक प्रतिष्ठित और संभ्रांत राष्ट्रप्रेमी कुल की महिला का प्रस्ताव भी ऐसा ही आ गया था। आपने अपने ढंग से उसका समाधान भी कर दिया। परंतु उससे हुआ कुछ भी नहीं। वह कभी बैठ नहीं सकती। जब ईरान और तूरान, मिस्र और अरब हमारे शब्दों का सत्कार न करेंगे और हमें आदर की दृष्टि से न देखेंगे तब हम भी उनको किसी और ही दृष्टि से देखेंगे। किंतु बीती बातों को लेकर उनसे उलझने की कोई बात नहीं। यहाँ कभी उनका शासन अपनी ओर से न रहा। वहाँ के लोग जैसे- तैसे यहाँ आए और यहाँ राजसुख भोगने तथा यहाँ के लोगों को खसोटने में लगे रहे। मन बहुत बढ़ गया तो राज भी गया, सुख भी गया और वह मान भी न रह गया। वह दिन लद गया, दुनिया पलट गई। अब तो इंसान से नाता हो गया और देश का देश से डाँडा। बस, अब अपने हित की बात कहें और अपने देश का भला करें। पड़ोस का प्रेम पाना है तो पड़ोस में जाकर पड़ोस की १-विचार की एकता। स-सच्ची सहानुभूति । ३--उत्तम मार्ग ।