पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२९

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राष्ट्रभाषा १६ बेचारी 'गूजरी' छूट ही गई। पर करें क्या, जब देखते हैं कि चारों ओर राष्ट्रभाषा के प्रचार का श्रेय मुगल सामन्तों वा मुसलमानों को दिया जाता है और भाषा के इतिहास पर प्रमाद- वश पानी डाला जाता है तब कुछ बीती बात उभारनी ही पड़ती है। आशा है कि इतने से ही स्पष्ट हो गया होगा कि इसलाम के लाहौर में बसने वा मुसलमानों के दिल्ली में जम जाने के बहुत पहले ही किस प्रकार अपभ्रंश का भारत भर में प्रचार हो गया था । अस्तु, अब उस भ्रम का भी मूलोच्छेद करना चाहिए जो किसी पढ़े- लिखे बाबू को नागरी भाषा कहने से रोकता है और नागरी सदा देवनागरी का ही पर्याय मानता है, कैथी का कभी नहीं। यह तो खुली हुई बात है कि नागरी भाषा का प्रयोग स्वभा- वतः नागरापभ्रंश के लिए ही हो सकता है फिर भी न जाने क्यों लोग नागरी भाषा से भड़कने लगे हैं। संघटित प्रचार में कितना बल होता है इसका एक प्रमुख प्रमाण यह भी है। यदि आप फोर्ट विलियम के आईन' को देखें तो पता चले कि उसमें नागरी भाषा और लिपि का व्यवहार हुआ है। लिपि तो उसकी प्रत्यक्ष कैथी ही है, पर कही गई नागरी ही है क्यों ? बात यह है कि अभी नागरी और कैथी का घोर भेद खड़ा नहीं हुआ था और नागरी का अर्थ केवल देवनागरी ही न था। सच तो यह है कि उस समय नागरी के दो भेद अथवा उचित होगा दो रूप चल रहे थे। उनमें से एक का प्रयोग तो ग्रंथों को शुद्ध शुद्ध लिखने के हेतु होता था और दूसरा व्यवहार ( कचहरी) में चालू था। नागरी शुद्ध रूप का उपयोग संस्कृत के लिये अधिक होता था, अतः उसे १-इसकी कुछ प्रतियाँ काशी के 'आर्यभाषा पुस्तकालय में सुरक्षित हैं।