पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२८९

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हिंदुस्थानी का मवजाल २७६ 'नागरी नाम की भाषा का उल्लेख हो न किया हो। नहीं, आपने बताया है कि नगर ब्राह्मणों की गुजराती नागरी कही जाती है। परंतु इस जन ने भली भाँति दिखा दिया है कि दिल्ली' से 'कलकत्ता तक नागरी का व्यवहार भाषा के अर्थ में हुआ है और फलतः 'द्वाब' की ठेठ जनता में होता भी है। सच तो यह है कि यदि भारत की भाषा-पड़ताल भारत की धष्टि से होती और राजनीति का तिनतसवा' न होता तो उसी पड़ताल में हिंदी का विभाजन इस प्रकार होता है- हिंदी पश्चिमी हिंदी पूर्वी हिंदी नागरी बांगर ब्रजभाषा कन्नौजी बुदेली गूजरी (दक्खिनी) रेखता उर्दू हमारा उद्देश्य विवरण देना या पंजर खड़ा करना नहीं, केवल इतना दिखाना भर है कि 'नागरी को भाषा मान लेने का परिणाम यह होता कि उत्तर से दक्षिण तक इसका सारा इतिहास आपही झलक उठता और फिर किसी हिंदी हिंदुस्तानी का संघर्ष न उठता। परंतु 'भाषा-पड़ताल' का इष्ट भाषाशास्त्र नहीं राज- नीति है और वह विज्ञान की ओट में खड़ी भर की गई है, इसीसे 'नागरी' को उसमें लिपि' कह कर टाल दिया गया। और हिंदी को 'उच्छ' बताकर छोड़ दिया गया। वरद हाथ 'हिंदुस्तानी' पर पड़ा और वह घर की बोली के साथ ही देश की बानी भी