पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२८६

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राष्ट्रभाषा पर विचार परंतु देखना तो यह है कि क्या इस तीन टाँग की दौड़ से ही हमारा राष्ट्र आगे बढ़ सकेगा और तनी फाट पर बहकर ही देश का कल्याण करेगा। अरे, सरस्वती की चिंता छोड़ो, दिल्ली की यमुना को प्रयाग में मिलकर गंगा बन जाने दो फिर देखो हिंदी में क्या नहीं है जो लुप्त सरस्वती के पीछे मर रहे हो । सरस्वती भीतर बहती है बाहर नहीं । एकता मन से होती है तन से नहीं। मन से तो- इन ताज़ा खुदानों में बड़ा सबसे वतन है। जो पैरहन' इसका है वह मज़हब का कफ़न है । का जाप करें और देश प्रेम को इसलाम का शत्रु सममें और मुँह से 'हिंदुस्तानी' और 'हिंदुस्तान के भक्त बने रहें यह हो नहीं सकता। हम जानते हैं कि हमारे देश का पढ़ा-लिखा मुसलमान इतना गुमराह हो गया है कि 'हिंदी साहित्य के इतिहास' के इतिहास में लिख जाता है- मुसलमान अरब नज़ाद थे। उनकी ज़बान अरबी थी। लेकिन उनके श्रदब की ज़बान फ़ारसी थी। यह जबान मुगलों की आमद से पहले. भी हिंदुस्तान में जारी हो चुकी थी और बहुत से अहल हुनूद भी जो दरबार से मुतालिक थे इस ज़बान में काफी महारत व शुहरत हासिल कर चुके थे। (तारीख अब हिंदी, लाला रामनारायन लाल बुकसेलर इलाहाबाद, सन् १६४२ ई०, पृष्ठ १०६) सैयद जहीरुद्दीन अहमद अलवी साहब की यह बात सुनकर विवेक को मूर्छा आ जाय तो आश्चर्य क्या ? आरंभ में पहले-पहल १--परिधान । ---उद्भव । ३–हिंदू लोग | ४--संवद्ध । ५-अभ्यास । ६-प्रसिद्धि ।