पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२८५

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हिंदुस्थानी का भँवजाल उसके चित्त को। उसके तत्व को। और इस राष्ट्र की सच्ची जानकारी प्राप्त होगी इसकी भाषा 'हिंदी' में ही। हिंदी संस्कृत भी हिंदी प्राकृत भी है, हिंदी हिंदुस्थानी भी है और है हिंदी उर्दू भी; किंतु केवल उर्दू के लोगों के लिये । और उर्दू का अर्थ है 'मुगल दरबार' या हिंद के 'ईरानी' 'तूरानी' मुसलमान । यदि ये लोग अपनी अँकड़ का ब्रोड़कर सचाई की आँख से देखें और आज के 'ईरान-तूरान' से पाठ पढ़ें तो इनके हिंदी होने में विलंब क्या ? हाँ, हिंदी का अर्थ घृणा नहीं, प्रेम है ! आप किसी भी अपने प्यारे बोल को न छोड़िए, लिखिए और अपनी भाषा में लिखिए; पर उसको सबसे लिनवाने का आग्रह छोड़ दीजिए, और देखिए कि यहाँ अरबी-फारसी बोलों के लिए जो कुछ हो रहा है क्या वह ईरान तूरान से अधिक है ? ईरान तूरान मुसलमान होकर अरबी को छोड़ रहा है और ढूँढ़ हुँढ़ कर अपनी वानी के शब्दों को ले रहा है तो हिंद हिंदू होकर भी उन शब्दों को कैसे छोड़ सकता है जो सदा से उसके साथ रहे हैं-धरों से लेकर पोथीपन्नों तक भरे पड़े हैं और प्रतिदिन लेनदेन नहीं तो कथा-वार्ता में अवश्य सुनाई देते हैं। श्राप भूलते हैं जो अरब की भाँति इस देश को भी जाहिल समझते हैं और इसलाम के पहले यहाँ का कुछ मानते ही नहीं। 'मुहम्मद' का इसलाम तो यहाँ चल सकता है 'महमूद' का कदापि नहीं। अच्छा, 'हिंदुस्तानी, यदि उर्दू का पर्याय नहीं है तो वह मुस- लमान को क्यों मान्य है ? माना कि हिंदी से मुसलमान का झगड़ा है पर 'हिंदुस्तानी' से उसका मेल कहाँ ? कव किसने उसकी हाँ भरी है और क्यों ? प्रकट है कि 'उर्दू शब्द की शक्ति और हिंदुस्तानी के प्रपंच के कारण कुछ लोग उसकी ओर मुक रहे हैं और अपने तथा अपने वर्ग को सचेत कर मैदान मारना चाहते हैं।