पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२८०

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२७० राष्ट्रभाषा पर विचार दूसरा हिंदी का फेडरेशन होगा। इसमें भुमालिक मुतवस्तः१ महारासटरा, बंबई शामिल होंगे। हमारा सूबा और बिहार हिंदी के फेडरेशन में होगा, मगर उर्दू का फेडरेशन यहाँ हमलाश्रावर रहेगा। और बहुल मुमकिन है कि यहाँ लिसानी तवायफुलमलूकी ( Lingu- istic Anarchy ) 3 रहे। जिस तरह बिलोचिस्तान के मुताल्लिक मैं कोई राय नहीं दे सकता, बंगाल के मुताल्लिक भी मैंने कोई राय कायम नहीं की। (हिंदुस्तानी रिसाला, सन् १९३८ ई०, खुतबा सदारत, पृष्ठ २६) श्री सैयद सज्जाद हैदर की पैठ पूरी न थी, इसलिए उनकी बुद्धि फेडरेशन से आगे नहीं बढ़ी, किंतु उसे इस बात का आभास हो गया कि युक्तप्रांत और बिहार पर उर्दू-संध का आक्रमण बराबर बना रहेगा और यहाँ भाषा का व्यभिचार कभी बंद न होगा। कर्मविपाकवश आज उर्दू फेडरेशन 'पाकिस्तान के पाक नाम से प्रचलित हो गया और पश्चिम से उड़कर पूर्वी बंगाल पर भी दुर्दिन सा छा गया; और बराबर हिंदी-संघ पर हमला आवर' भी हो रहा है। और सो भी किसके सहारे ! किस भाँति और किस ढब से!! उर्दू ? ना, उसके लिये अब लाग नहीं । अब तो रगड़ा 'हिंदी' 'हिंदुस्तानी' का हो रहा है और हो रहा है पूज्य बापूजी की प्रेरणा से। क्यों ? बात यह है कि उसे सुझाया गया है कि हिंदी हिंदू की भाषा है कुछ हिंदी की नहीं। हिंदी की भाषा तो है हिंदुस्तानी । वही हिंदुस्तानी जो दोनों लिपियों में लिखी जा सकती हो। पाऊज की सूझ, प्रियर्सन की बूझ और महात्मा जी की बानी । १-मध्यप्रदेश । २-अाक्रमणकारी । ३-भाषापरक श्रारा- जकता।