पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२७९

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हिंदुस्थानी का भँवजाल २६६ ठीक, पर इसे लेता कौन है ? कोनस-जन के निर्णय को कांग्रेस सरकार ने ठुकरा दिया और कांग्रेस सरकार के निर्णय को महात्मा जी ने ! फिर इस ठुकरान के राज्य में किसी निर्णय का महत्त्व क्या ? उत्तर भारत पुकार कर कहता है-'हिंदी' । आप गोहार लगाकर कहते हैं-हिंदुस्तानी' । और कोई कुशल विवेकी कहता है-हिंदी-हिंदुस्थानी ।' गढ़त नहीं, इतिहास की बात है। श्रीभूदेव मुखर्जी की आशा है-- भारतवासीर चलित भाषा-गुलिर मध्ये हिंदी हिंदुस्थानीई प्रधान, एवं मुसलमान दिगेर कल्याणे उहा समस्त-महादेश व्यापक | श्रतएव अनुमान करा जाइते पारे जे, उहाके अवलम्बन करिया-इ कोना दूरवर्ती भविष्य काले समस्त भारतवर्षे भाषा सम्मिलित थाकिये। (अचर प्रबंध, बंगला संवत् १३२८, पृष्ट, १६० से 'हिंदी ही क्यों ? बंगीय हिंदी परिषद् पृष्ठ ३ पर उद्धृत ) इस 'हिंदी-हिंदुस्थानी से महात्मा जी की हिंदी हिंदुस्तानी' सामने आ गई हो तो कृपा कर इतना और टाँक लीजिए। किसी उर्दू के पारखी की अगवानी है। कहते हैं- पंजाब, सिंध, सूबा सरहद उर्दू के फ़ेडरेशन में शामिल होंगे। यहाँ उर्दू हाकिम आला' होगी । मक़ामी हुकूमत खुद एख्तयारी पंजाब में पंजाबी को, सिंध में सिंधी को, सूबा सरहद में पश्तो को दी जायगी। बिलोचिस्तान के मुताल्लिक़ मैं कोई राय कायम नहीं कर सकता कि श्राया वह इस फेडरेशन में शामिल होगा या नहीं। १--प्रमुख शासक।२-स्थानीय शासन । ३-वाधीन ।