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राष्ट्रभाषा पर विचार २६४ देश के लिये 'हिंद' शब्द जितना प्यारा लगता है, उतना देश की जवान के लिये 'हिंदी शब्द प्यारा नहीं रहा। ऐसा कहा जा सकता है, 'हिंदी' के मुकाबले 'हिंदुस्तानी' शब्द ज्यादा पसंद किया जायगा (हरिजन सेवक, वही) क्यों पसंद किया जायगा, इसका भी कारण है । और कारण यही कि आज हिंदुस्तानी' का संकेत 'उर्दू हिंदी' कदापि नहीं । सुनिए, उसी 'मुसलिम डिवाइन' का कहना है- लेकिन हम अपने बदगुमान दोस्तों को बावर' कराना चाहते हैं कि यह लफ्ज हिंदुस्तानी मुसलमानों के इसरार से और मुसलमानों ही की तिफल तसल्ली के लिये रक्खा गया है, और इससे मुराद हमारी जवान है जो हमारी आम बोलचाल में | हमको जो कुछ शिकायत है वह यह है कि हिंदी और हिंदुस्तानी को हममानी और मुरादित क्यों ठहराया गया । (वही, पृष्ठ १०६) हो सकता है 'आम बोलचाल' और 'हमारी जुबान' का अर्थ आपने कुछ और समझ लिया हो और सत्य की खोज में पापंड को पा लिया हो। अतएव आपको जताया जाता है कि- यह समझना भी दुरुस्त नहीं कि इस तजवीज़ के पेश करनेवालों का यह मकसद है कि हम अपनी ज़शन में कोई ऐसी तबदीली कर लें जिससे वह 'हिंदी' या हिंदी के करीब बन जाए। हाशा व कल्ला इस किस्म की कोई बात नहीं है। बल्कि बईनहि उसी उर्दू उसी जवान, उसी बोलचाल को जो हम बोलते हैं, हम हिंदुस्तानी कहते हैं। (वही, पृष्ठ १११) १.सचेत। २-श्राग्रह। ३-सुखसंतोष। ४-एकार्थी। ५--पर्यायवाची । ६-कदापि वा कथमपि । ७-वस्तुतः। -