पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२७२

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राष्ट्रभाषा पर विचार हिंदी पर ना मारो ताना, सभी बताई हिंदी माना । यह जो है कुन खुदा का, हिंदी करें बयान सदाका । लोगों को जब खोल बतावै, हिंदी में कह कर समझा। जिन लोगों में नबी जो आया, उनकी बोली सों बतलाया। 'जिन लोगों में नबी जो आया' में जो बात कही गई है बड़े ही महत्व की है। देखिए तो विधि की विडम्बना कि आज भी इसी के मानने वाले हिंदी का विरोध न जाने किस मुंह से कर रहे हैं जब कि स्वयं 'कुआन करीम' का कहना है-- और ( आक्षेप करते हैं कि कुनि अरबी भाषा में क्यों उतारा गया, तो ऐ रसूल तुम इनसे कह दो कि) हमने (जब ) किसी रसूल को भेजा तो ( उसको ) उसी की जाति । और उसी के देस ) की भाषा में (अपनी किताब प्रदान की। और वही भाषा उसको सिखलाई) जिससे कि वह उनको (अर्थात् अपनी जाति के लोगों को) साफ (साफ अल्लाह के आदेशों को) बता सके। (कुरान मजीद, सूरत इब्राहीम, आयत ४ का ख्वाजा हसन निजामी देहलवी का अनुवाद) कहा जा सकता है कि कहा तो कहा पर किसी ने इस देश में इसका पालन भी किया ? हाँ किया और बड़ों से बड़ों ने किया। सुनिए उसी का आगे कहना है- हिंदी महदी ने फरमाई, स्तूंद मीर के मुँह पर श्राई । कई दोहरे साखी बात, बोले खोल मुबारक ज़ात । मियाँ मुस्तफा मैं भी कही, और किसी की फिर क्या रही ? (औरियंटल कालेज मैगजीन, लाहौर, सन् १९३८, पृष्ठ = } कोई भी विचारशील व्यक्ति देख सकता है कि इसमें जिस