पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२६६

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राष्ट्रभाषा पर विचार दवाज़दह तसनीफ़ कि बहिंदुस्तानी ज़बान धुरंद नामंद......। (बादशाहनामा; कलकत्ता १८६७ ई० भाग २, पृ०५६) भाव यह है कि जगन्नाथ 'कलावंत कविराय' की उपाधि से विभूषित है और हिंदुस्तानी गानों की रचना तथा उत्तम भावों के संग्रह में उसके समान स्वर्गतुल्य हिंदुस्तान में कोई नहीं। वह आज्ञानुसार रचना करने के लिये राजधानी में रह गया था। हिंदुस्तानी भाषा में जिसको ध्रुपद कहते हैं उसकी बारह रचनाओं को लेकर बादशाह शाहजहाँ की सेवा में प्रस्तुत हुआ। आगे जो कुछ हुआ वह तो दान-दक्षिणा की बात ठहरी। उससे अपना प्रयोजन क्या ? हाँ, इस बात को जान रखिए कि 'वादशाहनामा' में हिंदुस्तानी जबान' का प्रयोग उर्दू किंवा अरबी-फारसी से लदी हिंदी के लिये नहीं वरन् 'ब्रजभाषा' के लिये ही हुआ है। और उर्दू के प्रसिद्ध खोजी श्री हाफिज महमूद शेरानी ने 'वादशाहनामा' के 'बहिंदुस्तानी जबान तरजमा नमूदंद' को लक्ष्य करके लिखा भी है- मैं समझता हूँ कि इस इबारत में हिंदुस्तानी से मुराद उर्दू नहीं है बल्कि ब्रजभाषा है । (ओरियंटल कालेज मैगजीन, अगस्त सन १६३१, पृष्ट २०) ब्रजभाषा के प्रति शाहजहाँ की जो ममता रही है उसे इस जन की 'मुगल बादशाहों की हिंदी में देखिए और यहाँ बस इतना जान भर लीजिए कि उर्दू के लोग भी 'हिंदुस्तानी' का प्रयोग ब्रजभाषा के लिये फारसी ग्रंथों में पाते हैं। अच्छा तो जगन्नाथ कविराय की 'हिंदुस्तानी जवान है- हो जुनिभर्मी बैठी औचक न दे री पाछे ते नयन । श्रछन अछन पग धरन धरणी पर आवत जाने मयन ।