पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२६५

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हिंदुस्थानी का भँवजाल थोड़े ही जमानः में अदालतपमाह ऐसी खूब फारसी बोलने लगे कि जब तक हिंदी जबान में तकल्लुमन फ़रमाते सामग्रीनर को यह मालूम होता या कि बादशाह ने तमास उम्र सिबा फारसी के और किसी दूसरी ज़बान में गुप्तगू नहीं फ़रमाई । (तारीख फरिश्ता जिल्द चहारुम,उसमानिया-हैदराबाद, १६३२ पृ० १३८-६) श्री मुहम्मद किदा अली साहब 'तालिब' ने जो 'हिंदुस्तानी' को 'हिंदुई कर दिया है उसका कुछ अर्थ है। इसने अपने ब्राह्मण मंत्री को निकाला और फारसी को मुँह लगाया, किंतु इसके पूर्वज की दशा यह थी। इब्राहीम अादिल ने फारसी जवान को दफ्तर से स्वारिज करके हिंदी उसकी जगह रायज की। इब्राहीम आदिल ने बरहमनों को साहवे एख्तयार किया । ( वहीं पृ० ३६) अस्तु, फरिश्ता जिस 'हिंदुस्तानी' का उल्लेख कर रहा है वह वास्तव में हिंी ही है और 'हिंदी' ही उसे कहना भी चाहिए। रही 'बादशाहनामा' के लेखक श्री अब्दुल्ला हमीद लाहौरी की 'हिंदुस्तानी' । सो तो प्रत्यक्ष ही ब्रजभाषा है, क्योंकि यही उस समय की संगीत की भाषा है, और फलतः भाषामणि ब्रज' का उल्लेख भी अनेक गानों में पाया जाता है। एक स्थल पर यह बहुत कुछ स्पष्ट भी हो गया है। वह लिखता है- जगन्नाथ कलावंत कि बखिताब कविराय सरफराज़' श्रस्त, द दर तसनी नगमात हिंदुस्तानी व ताली मन्नानी इमरोज़ मिस्ल अदर हिंदुस्तान बिहिश्त निशाँ नेस्त । व वजहत वस्तन तसनीफ़ात हसत्रुल हुक्म दर दारुस्सलतनत मांदा दूँद बदरगाह आसमान जाह अामदह - १-वार्तालाप | २-श्रोताओं। ३---प्रभुत्वशाली ।