पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२६३

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हिंदुस्थानी का भवजाल का पर्याय है और है परंपरा से प्राप्त । हाँ, श्री ग्रियर्सन आदि की कूट-दृष्टि में वह अवश्य ही गंगा यमुना के 'द्वाव' में बोली जाने- वाली मानी है। उनकी कृपा से भाषा-विज्ञान के लोग तथा इस देश के सरकारी प्राणी हिंदुस्तानी को बोलचाल की भाषा मानते हैं और उसी मुसलमानी रीति को उर्दू तथा हिंदू-रीति को हिंदी कहते हैं । हिंदू मुसलमान का कुदरती मेल कब, कहाँ और किस कुदरत में होगा, इसे कौन कहे ! पर इसे कौन नहीं कह सकता कि इसी कुदरती' 'स्वाब' का परिणाम है अकुदरती पाकिस्तान । पाकिस्तान में किसी कुदरत का नहीं, किसी सर सैयद' का हाथ था। उसी 'सरसैयद' का जिसने 'मुसलमान' की 'रोजी' और 'रोजगार' पर इसलाम को कुरबान कर दिया। सो कैसे ? इसे किसी 'आज़ाद' से पूछ देखिए और पढ़ देखिए किसी 'अकवर' इलाहा- बादी से। अच्छा तो अब आइए प्रकृत विषय 'हिंदुस्थानी पर । हिंदुस्थानी नहीं तो हिंदुस्तानी पर। वही सैयद साहव फिर उर्दू के इन्तदाई मुसन्नीन' ने इसको हमेशा हिंदी कहा है, और अँगरेजों की जवान में अब तक इसका नाम हिंदोस्तानी है। (वही, पृष्ठ ७) हिंदुस्तानी का अर्थ आज भी विदेशों में उर्दू ही समझा जाता है और फिरंगी प्रायः हिंदी और हिंदुस्तानी का ही उल्लेख करते हैं। हिंदी के स्थान पर हिंदवी' वा 'हिंदुई का दर्शन भी बहुधा हो जाता है और उसका संकेत होता है हिंदू या देश की गवारी भाषा । जो हो, इसी सैयद जी का इतना और भी निष्कर्ष है- १--प्रारंभिक लेलकों।