पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२५९

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हिंदुस्थानी का भँवजाल २४६ अठा सुगला ही परा तेडाइ नै मो. अठै अकैलौ राखीजै तरै किरण ही । जाँण न दिया नै पातसा दूं लिखियौ दखिण था थे सगला न तेड़ावौ छौ पछौ अठै ही ती दखणी जोर करसी तरै पातसा साहजादा रा हिंदुत्थान रा परगना सौह तगार किया नै कहाड़ियो जु दखिर गुजरात मंडू पैली घरती थाँ दी है। (एशियाटिक सोसाइटी श्राव बंगाल, नवीन माला, भाग ५५, ५६१९, अंक १, पृष्ठ ५७) तथा साहिजादौ पण छडौ हुई हेक ताजमहल असपखाँ री बेटी साथे लै नै हिंदुसथान नें गढ रिण थाँभर न खड़िया तत्रै पातिसा ही लाहौर श्रायौ खबरि दुई साहजादौ किरियो । (वही, पृष्ठ ५८) मारवाड़, गुजरात, दक्षिण और लाहौर के साथ आपको जिस हिंदुस्थान का परिचय मिला उसी को दृष्टि में रखकर इतना और शोध लीजिए कि- स्वयं गुजराती की स्थिति इस क्षेत्र में क्या है। सो सौभाग्य से 'दाक्तर रुस्तम नानाभाई राणीना' की साखी हमारे सामने है। आप कहते हैं- पारसीयो ईश्वी सनना छेक सातनां सैकयार्थी मांडीने हिंदुस्थानमा श्राच्या तेज बखतथी मातृभूमि गुजरातने बनावी अने मातृभाषा गुजराती बर्ना; अने गुजराती भाषा हालनी तेसज जूनि बन्ने उपर सारो काबू मेलवी लखाण करवामां पण केटलाक पारसीयो अग्रेसर थया छ। तेमांवे प्रकारनो भेद लेखकोमा लखाणपरत्वे जेवामां आवे छे । एक तो ऊँची संस्कारी गुजराती भाषा लखनाराओ-संत्कृत अने फारती बन्ने भाषाश्रीना योग्य तथा समांतर मेल लावी मिश्रण करी लखन- राश्रो; अने बीजो दैनिक वगेरे छापावालायो, सिनेमा वगेरेनी जाहेर-