पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२५८

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राष्ट्रभाषा पर विचार जानते हैं कि उन दो भाषाओं का मिश्रित होना सबसे श्रेष्ठ बात होगा। क्योंकि वैसी संयुक्तता से सारे हिंदुस्थान के लिये एक ही भाषा निकलेगा। मेरी समझ में वैसा बोध मूर्खता की बात है। (हिंदी, नागरीप्रचारिणी सभा, काशी, सं० २००१, पृष्ठ १) 'भूर्खता की बात' के साथ इतना और भी जान लें कि उक्त सजन की दृष्टि में- यह सच बात है कि श्रापको हिंदी और हिंदुस्थान सबसे मनोहर है। इसके बदले राजा शिवप्रसाद को अपना ही हित सब से भारी बात है। ( वही) 'हिंदी और हिंदुस्थान' के भक्त किसी 'हिंदुस्तानी' के द्वारा किस प्रकार सताए जाते हैं, इसका उदाहरण आपके सामने है। पर 'हिंदुस्थान' अंगरेज की देन नहीं। आलमगीर औरंगजेब के शासन की बात है। 'सोबा हिंदुस्थान' पर ध्यान दीजिए। कहते हैं- तिणि बेला नौवति निसाण तोगझण्डा सामिध्रम सोबा हिंदुस्थान री सरम भुजे श्राई। तिणी वेला रा आइऔ काला पहाड़ सोभा वरणी न जाई । (वचनिका रा० रतनसिंह जी री महेसदासौतरी, विवलिवोथिका इंडिका, प्रथम भाग, डिङ्गल, १६१७, पृष्ठ ४७) और साथ ही इतना और भी जान लें कि इसके (औरंग- जेब के ) पितामह जहाँगीर के शासन के अंतिम दिनों में भी यह 'हिंदुस्थान' था और किसी द्वेष या द्वन्द्व का कारण न था । एक ख्यात में कहा गया है- सं० १६७६ नै पातिसाही उमराव हिंदू तुरक दखिण था त्याँ यूँ पातसा तेड़ाया खाँधार मेलण | तरै साहजादै खुरम ही जाणियौ जु